Sunday, December 15, 2019
843. गरीबी भूख बेकारी (मुक्तक)
Saturday, December 14, 2019
842. बनते-बनते बन गया (कुंडलिया)
841. जाति-धर्म तय कर रहे (कुंडलिया)
Saturday, November 02, 2019
840. कंडा-सी सुलगत है (मुक्तक)
Sunday, September 29, 2019
839. उनको केवल याद हैं (कुंडलिया)
839. उनको केवल याद हैं (कुंडलिया)
अगर आज शहीदों की बात करें तो आज के तथाकथित देशभक्तों की जिव्या पर तीन-चार ही नाम दिखते हैं। जब स्वतंत्रता की लड़ाई में शहीद हुए कुछ वीर और वीरांगनाओं को ही याद किया जाएगा, तब उनकी सोच पर पक्षपात का प्रश्नचिन्ह तो लगेगा ही। इसी पर मेरी एक कुंडलिया छंद।
उनको केवल याद हैं, भगत सिंह आजाद।
और साल में एक दिन, कर लेते हैं याद।
कर लेते हैं याद, एक थी लक्ष्मीबाई।
किन्तु याद ना उन्हें, मरी झलकारीबाई।
भूले, सुंदर, उषा, कहूँ क्या इस अवगुन को।
नहीं मुंदरी याद, अजीजन याद न उनको।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.09.2019
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सुंदरबाई, मंदरबाई, मुंदरीबाई, ऊषाबाई, मोतीबाई, अजीजनबाई, ये सब वे वीरांगनाएं हैं जिन्होंने अपने अपने इलाके में अंग्रेजी सेना से लोहा लिया और वीरगति को प्राप्त हुईं। इन जैसी सैकड़ों वीरांगनाओं और वीरों के बलिदान को एक साजिश के तहत छुपाकर रखा गया ताकि चंद लोगों को महिमामंडित किया जा सके।
Sunday, September 15, 2019
836. यूपी की इस पुलिस से (कुंडलिया)
836. यूपी की इस पुलिस से (कुंडलिया)
13.09.2019 को सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश में एक सब इंस्पेक्टर, वीरेंद्र मिश्रा और एक कांस्टेबल महेंद्र प्रसाद द्वारा एक युवक की तालवानी अंदाज में उसके छोटे-से भतीजे के सामने बेहरमी से पिटाई की और उसकी रीढ़ की हड्डी, गर्दन की हड्डी तोड़ने की कोशिश की गई। यही नहीं उसके पैर पकड़कर उसे चीरकर मार डालने की कोशिश की गई। निर्दयी और बहसी पुलिस वालों ने उसकी जान लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह उसकी किस्मत थी कि वह बच गया।
इसके बाद जब वीडियो वायरल हुआ और NDTV ने इसे दिखाया तब दोनों पुलिसवालों के खिलाफ धारा 307 में FIR दर्ज की गई।
अब प्रश्न यह है कि जिस बच्चे ने यह सब देखा है वह कैसे विश्वास करेगा कि पुलिस जनता की दोस्त होती है। क्या वह भविष्य में मदद के लिए पुलिस के पास जाने की सोचेगा?
यह कोई पहली घटना नहीं है। ऐसी बर्बरतापूर्ण घटनाएं रोज हो रहीं हैं। जिसमें से बहुत तो प्रकाश में भी नहीं आतीं। ये ज्यादातर गरीब, कमजोर लोगों के खिलाफ होतीं हैं।
यूपी की इस पुलिस से, सभी रहो हुशियार।
ना जाने कब ठोंक दे, कब दे किसको मार।
कब दे किसको मार, तोड़ दे हड्डी पसली।
कुछ भी है नहिं झूठ, बात है पूरी असली।
जैसे हो सरकार, यहाँ इनकी फूफी की।
सावधान हुशियार, पुलिस है यह यूपी की।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.09.2019
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835. सूर सूर तुलसी शशी (एक प्रश्न)
हिंदी दिवस पर
835. सूर सूर तुलसी शशी (एक प्रश्न)
"सूर सूर तुलसी शशी, उडगन केशवदास।
अब के कवि खद्योत सम, जहँ-तहँ करत प्रकाश।"
अगर हम यह कहकर कुछ कवियों को मुकुट बनाकर शीश पर सजाने की बात करें और शेष को धूलि के बराबर महत्व दें तब हमारी बात पर कैसे और कितना भरोसा किया जाय, यह एक विचारणीय प्रश्न है। क्या इन्हीं तीन कवियों को पढ़कर लोक-कल्याण और हिंदी का उत्थान हो सकता है।
अगर ये ही तीन लोग मानव जाति के लिए प्रदीप्त स्तंभ हैं, तो फिर
"आचार्य हजारी प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, महावीर प्रसाद, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' सच्चिदानंद हीरानंद, महादेवी वर्मा, मैथलीशरण, सुमित्रानंदन प्रेमचंद, रामधारी सिंह दिनकर, कबीरदास, रहीमदास, अयोध्यासिंह उपाध्याय, अज्ञेय, आचार्य चतुरसेन आदि सारे के सारे हिंदी कवि और लेखक जुगनूं ही हैं।" क्या इसे सच माना जा सकता है?
हाय द्वेष तू जो भी कराए वह कम है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.09.2019
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Tuesday, September 10, 2019
834. उन ग्रंथों में है क्या धरा (मुक्तक)
834. उन ग्रंथों में है क्या धरा (मुक्तक)
उन ग्रंथों में कुछ नहीं धरा, जो ऊँचनीच की बात करें।
जो चतुर्वर्ण के पोषक हैं, जो छुआछूत की बात करें।
जो एक को ईश्वर सम मानें, जो एक को पशु से भी नीचे,
जो मानवता का दम्भ भरें, दानवता जैसी बात करें।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.09.2019
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Monday, September 02, 2019
833. पनघट पीपल से कहे (कुण्डलिया)
833. पनघट पीपल से कहे (कुण्डलिया)
पनघट, पीपल से कहे, बदल गये हैं गाँव।
मैं भी जर्जर हो चुका, बची न तुझमें छाँव।
बची न तुझमें छाँव, जरा का रोग लगा है।
यौवन के सब मीत, वृद्ध का कौन सगा है।
कहाँ नारियाँ दिखे, शीश पर दिखे कहाँ घट।
पायल चूड़ी बिना, आज सूना यह पनघट।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.09.2019
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Monday, August 26, 2019
832. जीवन भर जूझत रहा (कुंडलिया)
832. जीवन भर जूझत रहा (कुंडलिया)
जीवन भर जूझत रहा, लेकर खाली पेट।
मरते लाखों का हुआ, उसके शव का रेट।
उसके शव का रेट, लगाते नाच-नाचकर।
किसने कितना दिया, बताते बाँच-बाँचकर।
घड़ियाली ले अश्रु, करें परिक्रमा तन-तन।
कैसी है यह मौत, हाय यह कैसा जीवन।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.08.2019
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Sunday, August 25, 2019
831. गुरुजी ने कलुआ को डाँटा
831. गुरुजी ने कलुआ को डाँटा
गुरुजी ने कलुआ को डाँटा,
तू खड़े-खड़े पेशाब करे।
नालायक खुद तो बिगड़ा है,
सारा स्कूल खराब करे।
झल्लाकर बोले कलुआ से,
चल घर चल वहीं बताऊँगा।
तेरे उत्पातों की गाथा,
मुखिया को जाय सुनाऊँगा।
कर पकड़ ले चले कलुआ को,
गुरुजी को कुछ भी पता नहीं।
यह ज्ञान बाप से ही पाया,
बेटे की कोई खता नहीं।
गुरुजी ने देखा मुखिया खुद,
छत पर चढ़कर पेशाब करे।
सोचें जब राजा हो ऐसा,
जनता क्यों ना उत्पात करे।
कथनी को सुनता कौन यहाँ?
करनी को सब अपनाते हैं।
यह बात सत्य गुण-दोष सदा,
ऊपर से नीचे आते हैं।
कपड़ा भी वैसा ही होगा,
जैसा कपड़े का सूत रहा।
बेटा क्यों ना मूते छत से,
बापू जब छत से मूत रहा।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.08.2019
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Thursday, August 22, 2019
830. जब से है चालू किया (कुंडलिया)
830. जब से है चालू किया (कुंडलिया)
जब से है चालू किया, गौशाला व्यवसाय।
तब से हे प्रभु! हो रही, रोज दोगुनी आय।
रोज दोगुनी आय, मजे में हूँ मैं स्वामी।
हुए सभी दुख दूर, दूर अब हर नाकामी।
ऐसा ही व्यवसाय, ढूँढ़ता था मैं कब से।
घर भर में आनंद, मिली गौशाला जब से।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
22.08.2019
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Tuesday, August 20, 2019
829. तन पर कपड़े गेरुआ (कुंडलिया)
829. तन पर कपड़े गेरुआ (कुंडलिया)
तन पर कपड़े गेरुआ, मन में भरा विकार।
ऐसों ने है कर लिया, धर्मों पर अधिकार।
धर्मों पर अधिकार, भूमि जबरन कब्जाएं।
हाथ पैर दें तोड़, राह में जो भी आएं।
धर्म दुधारू गाय, बना ली दुहते जी भर।
मन में भरी गलीज, गेरुआ कपड़े तन पर।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.08.2019
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Sunday, August 18, 2019
828. डेढ़ अक्ल थी सृष्टि में (कुंडलिया)
828. डेढ़ अक्ल थी सृष्टि में (कुंडलिया)
डेढ़ अक्ल थी सृष्टि में, कहता मेरा यार।
एक ईश ने दी उसे, आधे में संसार।
आधे में संसार, कौन है उसके जैसा।
दिन को मानो रात, कहा गर उसने ऐसा।
जो पाई है अरे, अक्ल की सिर्फ शक्ल थी।
क्यों भ्रम में जी रहा, सृष्टि में डेढ़ अक्ल थी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.08.2019
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Sunday, August 11, 2019
826. गधे पँजीरी खा रहे (कुंडलिया)
826. गधे पँजीरी खा रहे (कुंडलिया)
गधे पँजीरी खा रहे, घोड़ों को नहिं घास।
चवनप्राश उनको मिले, जो हैं खासमखास।
जो हैं खासमखास, उन्हें सब सुख सुविधाएं।
ढेंचूँ - ढेंचूँ करें, गर्दभी राग सुनाएं।
जो-जो घोड़े यहाँ, देह सबकी है पीरी।
रामराज्य चहुँओर, खा रहे गधे पँजीरी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.08.2019
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825. झरकटियों की वंदना (कुंडलिया)
825. झरकटियों की वंदना (कुंडलिया)
झरकटियों की वंदना, करो रोकता कौन।
पर कीकर होता नहीं, शीशम या सागौन।
शीशम या सागौन, फला करते दशकों में।
सबको है मालूम, भरा क्या इन मश्कों में।
क्यों झूठी जयकार, कर रहे हो घटियों की।
पीपल होकर करो, वंदना झरकटियों की।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.08.2019
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Thursday, August 08, 2019
824. तेरे नयनों में प्रिये (कुंडलिया)
824. तेरे नयनों में प्रिये (कुंडलिया)
तेरे नयनों में प्रिये, डूब हुआ बेहाल।
थामें रहना हाथ मम, रखना मेरा ख्याल।
रखना मेरा ख्याल, भरोसा केवल तेरा।
सब कुछ दीन्हा सौंप,अब नहीं कुछ भी मेरा।
शशि-मुख मंडल देख, मर रहे कई चकोरे।
लेना लें कहिं प्राण, सनम ये नयना तेरे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.08.2019
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Sunday, August 04, 2019
822. सृष्टि-आधार हो (मुक्तक)
822. सृष्टि-आधार हो (मुक्तक)
सृष्टि-आधार हो, शक्ति का पुंज हो, नार तुमको नमन, नार तुमको नमन।
तुम न हो तो धरा एक शमशान है, तुमसे सुरभित पवन, तुमसे शोभित चमन।
कामना-वासना से जगत त्रस्त है, तुम ही करती दमन तुम ही करती शमन।
प्रेम पुष्पित करो, तुम करो पल्लवित, तुम्हरा हर आगमन शोक का है गमन।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
04.08.2019
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Saturday, August 03, 2019
821. तन पीत वसन में लिपटा है (मुक्तक)
821. तन पीत वसन में लिपटा है (मुक्तक)
तन पीत वसन में लिपटा है, कंचन-सी काया दमक रही।
अधरन पर मधुरिम हास सजे, दतियन में दामिन चमक रही।
साँसों से सुगंधित पवन बहे, चहुँदिश मलयज-सी गमक रही।
कुछ दूर सफलता स्वागत को, अपने कदमों को धमक रही।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.08.2019
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820. एक रचना।
820. एक रचना।
कभी छुपो, कभी दिखो, माहताब-सी लगो।
कभी सवाल की तरह, कभी जवाब-सी लगो।
महकने लगा चमन, बहकने लगा पवन,
कुमुदिनी लगो कभी, कभी गुलाब-सी लगो।
इस तरह से छू लिया, कि पैर लड़खड़ा रहे,
शबाब से भरी हुई, कोई शराब-सी लगो।
संगमरमरी बदन पे, नूर ऐसा छा रहा,
चौहदवीं के चाँद-सी, या आफताब-सी लगो।
आज भी वही गुरूर, आज भी वही अकड़,
आज भी वही ठसक, तुम नबाब-सी लगो।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.08.2019
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819. दो दोहे क्या लिख लिए (कुंडलिया)
819. दो दोहे क्या लिख लिए (कुंडलिया)
दो दोहे क्या लिख लिए, बनते सूर-कबीर।
तुक्का कभी चलात हैं, कभी चलाएं तीर।
कभी चलाएं तीर, एक पटना इक दिल्ली।
कभी ऊँट के संग, बाँध देते हैं बिल्ली।
कथ्य-तथ्य बेजान, काफिया भी नहिं सोहे।
मूँछे ऐंठत फिरें, लिखे जब से दो दोहे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.07.2019
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Thursday, August 01, 2019
818. यह कैसा रामराज्य भाई? (गीत)
818. यह कैसा रामराज्य भाई? (गीत)
यह कैसा रामराज्य भाई?
मर जाते है शिशु तड़प-तड़प, कोई भी जिम्मेदार नहीं।
लगता गरीब के बच्चों को, जीने का है अधिकार नहीं।
केवल वोटों की चिंता है, जनता की कोई फिक्र नहीं।
अफसोस नहीं कुछ लाज नहीं, निज नाकामी का जिक्र नहीं।
इनके चहरे हैं लाल-लाल, हमरे चहरों पर मुर्दाई।
हैं कई मुज्जफरनगर यहाँ, कितने ही हैं कन्नौज यहाँ।
बच्चियाँ नोचकर खा जाते, ऐसे गिद्धों की फौज यहाँ।
जिस जगह दबी होंगी लाशें, ऐसे तो कई ठौर होंगे।
इस रामराज में ना जाने, कितने उन्नाव और होंगे।
जिस जगह कई मक्कारों ने, अस्मत होगी नोची खाई।
भारत माता की जय-जयकर, सड़कों पर झुंड उतर आते।
जिसने भी आनाकानी की, तो पकड़ उसे सब लठियाते।
हर लड़की इन्हें लगे गुंडी, हर लड़का है मजनूं लगता।
ज्योंही कोई जोड़ा देखें, अंतर का क्रोध फूट पड़ता।
झंडा-डंडा ले हाथ आज, गुंडों की नई फौज आई।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
01.08.2019
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Tuesday, July 30, 2019
817. राँड़ रड़ापो काट ले (कुंडलिया)
817. राँड़ रड़ापो काट ले (कुंडलिया)
राँड़ रड़ापो काट ले, रसिक न काटन देंय।
कूद-कूद बिन बात पर, जाय-जाय सुध लेंय।
जाय-जाय सुध लेंय, छः दफा दिन में रड़ुआ।
तिरछी माँग निकार, ताक में रहते भड़ुआ।
लोक-लाज नहिं उम्र, न दीखे इन्हें बुढ़ापो।
ऐसे में किस तरह, काट ले राँड़ रड़ापो।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.07.2019
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Monday, July 29, 2019
816. जिस रोज से देखा है तुझको (मुक्तक)
816. जिस रोज से देखा है तुझको (मुक्तक)
जिस रोज से देखा है तुझको, उस रोज से तुझमें दिल अटका।
इक बार अरे यह क्या भटका, तब ही से फिरे भटका-भटका।
नाजुक तन पर यों जुल्म न कर, इस भाँति लगा मत तू झटका।
केहर कटि मोंच न खा जाए, मन में दिनरात यही खटका।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.07.2019
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Sunday, July 28, 2019
815. चरणवंदना छलकपट (कुंडलिया)
815. चरणवंदना छलकपट (कुंडलिया)
चरणवंदना, छलकपट, ढोंग, अंधविश्वास।
फूहड़ता, बेहूदगी, नैतिकता का ह्रास।
नैतिकता का ह्रास, चक्षु दोऊ है मीचे।
अंधभक्ति में गिरा, मीडिया इतना नीचे।
फड़फड़ाय रह जाय, मगर कर सके बंद ना।
बेबस हो दिन-रात, कर रहा चरणवंदना।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.07.2019
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814. नहिं काँवड़ हैं नहिं कावड़िए (मुक्तक)
814. नहिं काँवड़ हैं नहिं कावड़िए (मुक्तक)
नहिं काँवड़ हैं, नहिं कावड़िए, पहले-सा दिखे नहिं दमखम है।
सब शिविर पड़े सूने-सूने, सड़कों से गायब बम-बम।
पैरों में कमर में नहिं घुँघुरू, पायल भी नहीं, नहिं छम-छम है।
लगता है भाँग-धतूरे का, इस बार असर कुछ कम-कम है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.07.2019
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813. ईश्वर से है कामना (कुंडलिया)
813. ईश्वर से है कामना (कुंडलिया)
ईश्वर से है कामना, रहो हमेशा साथ।
सुख-दुख में छूटे नहीं, प्रिये तुम्हारा हाथ।
प्रिये तुम्हारा हाथ, मुझे देता है संबल।
जीवन में हो तुम्हीं, तुम्हीं इस मन में केवल।
प्रेम त्याग तकरार, तुम्हीं से पोषित है घर।
जीवन दिया सँवार, कृपा कीन्ही है ईश्वर।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.07.2019
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Wednesday, July 24, 2019
812. तेरे सँग जो संगिनी (कुंडलिया)
812. तेरे सँग जो संगिनी (कुंडलिया)
तेरे सँग जो संगिनी, कल थी मेरे संग।
गिरगिट से भी तेज है, पल-पल बदले रंग।
पल-पल बदले रंग, वफ़ा इसको नहिं आती।
झूठे अश्रु बहाय, कसम यह सौ-सौ खाती।
धन दौलत सुख-चैन, हाथ सब पर यह फेरे।
हँस-हँस करे हलाल, संग में जो है तेरे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.07.2019
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811. नहीं मठों में कुछ रखा (कुंडलिया)
811. नहीं मठों में कुछ रखा (कुंडलिया)
नहीं मठों में कुछ रखा, सब कोरी बकबास।
मंदिर में भी कुछ नहीं, मत रख इनसे आस।
मत रख इनसे आस, यहाँ पर सिर्फ कीच है।
जातिपाँति छल कपट, सोच निकृष्ट नीच है।
छुआछूत पाखण्ड, गले तक भरा शठों में।
छोड़ बावले छोड़, रखा कुछ नहीं मठों में।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.07.2019
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811. नहीं मठों में कुछ रखा (कुंडलिया)
811. नहीं मठों में कुछ रखा (कुंडलिया)
नहीं मठों में कुछ रखा, सब कोरी बकबास।
मंदिर में भी कुछ नहीं, मत रख इनसे आस।
मत रख इनसे आस, यहाँ पर सिर्फ कीच है।
जातिपाँति छल कपट, सोच निकृष्ट नीच है।
छुआछूत पाखण्ड, गले तक भरा शठों में।
छोड़ बावले छोड़, रखा कुछ नहीं मठों में।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.07.2019
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810. मंदिर-मस्जिद में नहीं (कुंडलिया)
810. मंदिर-मस्जिद में नहीं (कुंडलिया)
मंदिर-मस्जिद में नहीं, जो है मन के पास।
इन पर अब तो आजकल, रहा नहीं विश्वास।
रहा नहीं विश्वास, कैद कर रक्खे ईश्वर।
शब्दों में है जहर, शीश पर चढ़ा शनीचर।
बेमतलब की अकड़, पकड़कर बैठे हैं जिद।
गुमसुम से चुपचाप, खड़े हैं मंदिर-मस्जिद।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.07.2019
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809. सत्ता में जो-जो मिले (कुंडलिया)
809. सत्ता में जो-जो मिले (कुंडलिया)
सत्ता में जो-जो मिले, मिले न मठ के पास।
इसीलिए मठ से नहीं, सत्ता से है आस।
सत्ता से है आस, लुटेरे ठग चोरों को।
लोभी लंपट दुष्ट, धूर्त काले - गोरों को।
नौकर - चाकर फोन, कोठियां गाड़ी भत्ता।
सारे ही सुख मिलें, मिले जिस दिन से सत्ता।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.07.2019
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Tuesday, July 23, 2019
808. आजकल मगरूर बेहद (मुक्तक)
808. आजकल मगरूर बेहद (मुक्तक)
आजकल मगरूर बेहद, हो रहीं हैं कुर्सियाँ।
नफरतों के बीज घर-घर, बो रहीं हैं कुर्सियाँ।
लाज लुटती तो लुटे, मरता कोई तो वह मरे।
तानकर खद्दर की चादर, सो रहीं हैं कुर्सियाँ।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.07.2019
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Monday, July 22, 2019
807. लोग भूख से मर रहे (कुंडलिया)
807. लोग भूख से मर रहे (कुंडलिया)
लोग भूख से मर रहे, मजा कर रहा तंत्र।
कुछ ही यहाँ स्वतंत्र है, शेष सभी परतंत्र।
शेष सभी परतंत्र, लगे हैं मुँह पर ताले।
था-था थैया करें, मौज में दौलत वाले।
सूख-सूख हो गए, नौजवां जले रूख से।
सूखा बाढ़ अकाल, मर रहे लोग भूख से।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
22.07.2019
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Sunday, July 21, 2019
805. मंदिर की जिद मत करे (कुंडलिया)
805. मंदिर की जिद मत करे (कुंडलिया)
मंदिर की जिद मत करे, तू है अरे अछूत।
नहीं उच्चकुल गोत्र है, नहिं सवर्ण का पूत।
नहिं सवर्ण का पूत, इसलिए हूँ समझाता।
जन्मजाति तू हीन, समझ में क्यों नहिं आता।
खाकर घूँसा-लात, भेंट मत चढ़ शातिर की।
ज्ञानचक्षु को खोल, छोड़ तू जिद मंदिर की।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
21.07.2019
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Saturday, July 20, 2019
804. पढ़ा-पढ़ाकर थक गए (कुंडलिया)
804. पढ़ा-पढ़ाकर थक गए (कुंडलिया)
पढ़ा-पढ़ाकर थक गए, नीत नियम के पाठ।
उसने है सीखा फकत, सोलह दूनी आठ।
सोलह दूनी आठ, तीन को पाँच बताता।
कैसे बोलें झूठ, उसे बाखूबी आता।
अर्धसत्य आँकड़े, गिनाता बढ़ा-चढ़ाकर।
मरने वाले मरे, सत्य को पढ़ा-पढ़ाकर।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.07.2019
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Wednesday, July 17, 2019
803. तेरी जो यह भक्त है (कुंडलिया)
803. तेरी जो यह भक्त है (कुंडलिया)
तेरी जो यह भक्त है, कल थी मेरी भक्त।
मित्र बदलने में इसे, कभी न लगता वक्त।
कभी न लगता वक्त, वफ़ा इसने नहिं सीखी।
फितरत इसकी मित्र, रही है जोंक सरीखी।
कन्नी लेगी काट, एक दिन तुझसे चेरी।
जो मेरी ना हुई, भला क्या होगी तेरी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.07.2019
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802. मेरे कल जो भक्त थे (कुंडलिया)
802. मेरे कल जो भक्त थे (कुंडलिया)
मेरे कल जो भक्त थे, अब हैं तेरे भक्त।
परसों होंगे और के, ये हैं वक्त-परस्त।
ये हैं वक्त-परस्त, वफादारी नहिं आती।
कन्नी लेते काट, मुसीबत जब पड़ जाती।
जो-जो मित्र घनिष्ठ, आज हैं तुझको घेरे।
आकर के कल फेरि, चाटिऐं तलवे मेरे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.07.2019
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Tuesday, July 16, 2019
801. रोम-रोम कर्जे में डूबा (मुक्तक)
801. रोम-रोम कर्जे में डूबा (मुक्तक)
रोम - रोम कर्जे में डूबा, देह लगी है सट्टे पर।
बीज-खाद में लोटा-थरिया, रखे ब्याज अरु बट्टे पर।
दिन भर गात जलाती कमली, बच्चों के सँग भट्टे पर।
और शाम को खीज उतारे, कुढ़-कुढ़कर सिलबट्टे पर।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.07.2019
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801. रोम-रोम कर्जे में डूबा (मुक्तक)
रोम - रोम कर्जे में डूबा, देह लगी सट्टे पर।
बीज-खाद में लोटा-थरिया, रखे ब्याज-बट्टे पर।
दिन भर गात जलाती कमली, बच्चों सँग भट्टे पर।
और शाम को खीज उतारे, कुढ़-कुढ़ सिलबट्टे पर।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.07.2019
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Sunday, July 14, 2019
800. पंकज मुख श्यामल लटें (कुंडलिया)
800. पंकज मुख श्यामल लटें (कुंडलिया)
पंकज मुख श्यामल लटें, गौरवर्ण ये गात।
गहरे दृग, रक्तिम अधर, मृदु मुस्कान सुहात।
मृदु मुस्कान सुहात, भाल पर बिंदी चमके।
मलयज बहे सुगंध, देह कुंदन-सी दमके।
नथनी, झुमके, हार, सभी लूटें अनुपम सुख।
पंकज रहा लजाय, देखकर यह पंकज मुख।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.07.2019
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Friday, July 12, 2019
799. दिल लेकर के दिलदार बने (मुक्तक)
799. दिल लेकर के दिलदार बने (मुक्तक)
दिल लेकर के दिलदार बने, फिर कैसे कहें तुम जानत ना।
हम प्रेम करें दिल खोल करें, हम प्रेम में बीनत- छानत ना।
हिय हार गए सब सौंप दिया, हम मानत हैं तुम मानत ना।
इस बात पे लानत है तुमको, हमको इस बात पे लानत ना।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.07.2019
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Thursday, July 11, 2019
798. सरकारें आईं गयीं (कुंडलिया)
798. सरकारें आईं गयीं (कुंडलिया)
सरकारें आईं गयीं, बेड़ी सकीं न काट।
दूरी राजा-रंक की, तिल भर सकीं न पाट।
तिल भर सकीं न पाट, जाति-धर्मों की खाई।
उलटे इनने ऊँच-नीच की आग लगाई।
न्याय कभी ना मिला, मिलीं केवल फटकारें।
सब नेता हैं एक, एक सी सब सरकारें।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.07.2019
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Tuesday, July 09, 2019
797. है प्रीत की ये ही रीत सदा (मुक्तक)
797. है प्रीत की ये ही रीत सदा (मुक्तक)
है प्रीत की ये ही रीत सदा, इसमें दुख ज्यादा, खुशियाँ कम।
ऊपर से हँसना पड़ता, अंदर से अंतर रहता नम।
घर फूँक तमाशा देख सके, तब ही तू इसमें डाल कदम।
उल्फत इतनी आसान नहीं, हँस-हँसकर पीना पड़ता गम।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.07.2019
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796. पानी-पैसा कीमती (कुंडलिया)
796. पानी-पैसा कीमती (कुंडलिया)
पानी - पैसा कीमती, मत करिए बर्बाद।
इनके बिन यह जिंदगी, रह न सके आबाद।
रह न सके आबाद, जान पर संकट आए।
जब नहिं हों ये साथ, मनुज को कौन बचाए।
पानी बिन चल सके, नहीं दो दिन ज़िंदगानी।
मत करिए बर्बाद, बचाओ पैसा - पानी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.07.2019
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Monday, July 08, 2019
795. कभी राम के नाम पर (कुंडलिया)
795. कभी राम के नाम पर (कुंडलिया)
कभी राम के नाम पर, कभी धर्म के नाम।
जग को ठगते लूटते, कर-कर स्वाँग तमाम।
कर-कर स्वाँग तमाम, धर्म को रोज निचोड़ें।
जालिम ढोंगी धूर्त, लाश तक ये नहिं छोड़ें।
ये सब लंपट दास, जिस्म के और जाम के।
केवल खुद के हुए, हुए नहिं कभी राम के।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.07.2019
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Sunday, July 07, 2019
794. सुख-चैन लिया निर्मोही ने (मुक्तक)
794. सुख-चैन लिया निर्मोही ने (मुक्तक)
सुख-चैन लिया निर्मोही ने, दिनरात सजन मोय तरसावे।
जबरन उर के पट खोल सखी, पिय हिय के भीतर घुस जावे।
जब-जब मैं मन कि बात करूँ, बतियन से बालम बिलमावे।
अंतर में उठती हूक यही, मम प्रेम नजर क्यों नहिं आवे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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793. संकट की है यह घड़ी (कुंडलिया)
793. संकट की है यह घड़ी (कुंडलिया)
संकट की है यह घड़ी, यह संक्रमण काल।
चुप मत बैठो साथियो, विपदा है विकराल।
विपदा है विकराल, लक्ष्य भी बेहद मुश्किल।
तम के बादल घिरे, नजर से ओझल मंजिल।
यह तो है कर्तव्य, इसे समझो मत झंझट।
है संक्रमण काल, बहुत गहरा है संकट।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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792. किस्मत के पट नहिं (मुक्तक)
792. किस्मत के पट नहिं (मुक्तक)
किस्मत के पट नहिं खुल पाए, थक गए इन्हें हम खुला-खुला।
मन की कालिख ना धुल पाई, तन गला दिया सखि धुला-धुला।
भगवान न मिलने को आए, थक गए नयन ये बुला-बुला।
खुद अपने को ही भूल गए, अपनों की कमियाँ भुला-भुला।
तन-मन-धन उसको सौंप दिया, बिस्तर पर अपने सुला-सुला।
उसने मुझको रसहीन किया, तन में अपना रस घुला-घुला।
हर बार किया मैंने सौदा, तखरी में खुद को तुला-तुला।
फिर भी प्रिय रूठ रहा मुझसे, अपने मुँह को वह फुला-फुला।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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791. कंडा-सी सुलगत है (मुक्तक)
791. कंडा-सी सुलगत है (मुक्तक)
कंडा-सी सुलगत है विरहन, तड़पत है जीती जर-जर के।
पिय का पथ रोज निहारत है, अँखियन में सपने भर-भर के।
कामिन चौकन्नी सहमी-सी, घर से निकसत है डर-डर के।
रड़ुआ देखें, चटकारे लें, अधरों पर रसना धर-धर के।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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Saturday, July 06, 2019
790. हमरे जीवन की नियति यही (मुक्तक)
790. हमरे जीवन की नियति यही (मुक्तक)
हमरे जीवन की नियति यही, जिंदा रहते हम मर-मर के।
सर्दी में गलाऐं तन अपना, गर्मी में जियें हम जर-जर के।
कबहूँ भर पेट न अन्न मिले, हारे हम मेहनत कर-कर के।
पैंतिस में पैंसठ के लगते, खाँसत हैं अब हम डर-डर के।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.07.2019
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789. आप उड़ाते खिल्लियाँ (कुंडलिया)
789. आप उड़ाते खिल्लियाँ (कुंडलिया)
आप उड़ाते खिल्लियाँ, काहे रोज हुजूर।
क्यों सेठों के संग में, क्यों हमसे हो दूर।
क्यों हमसे हो दूर, समझते काहे अंधा।
उनसे चमकें आप, आप से उनका धंधा।
सिर्फ चुनावी दिनों, याद हम सब हैं आते।
वरना पाँचौ साल, खिल्लियाँ आप उड़ाते।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.07.2019
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Friday, July 05, 2019
788. जल को भर के (दुर्मिल सवैया)
788. जल को भर के रमणी निकली (दुर्मिल सवैया)
जल को भर के रमणी निकली, मटकी निज कम्मर पे धर के।
जस नीर नहीं सिगरा जग ही, कमनीय चली घट में भर के।
जल का, थल का, जड़-चेतन का, सबका सुख-चैन चली हर के।
मत पूछ अरे किसको-किसको, ललना निष्प्राण चली कर के।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.07.2019
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Thursday, July 04, 2019
787. जो कल तक थे (मुक्तक)
787. जो कल तक थे (मुक्तक)
जो कल तक थे चोर-उच्चक्के, दौलत भरें करोड़ों की।
देशभक्त अपमानित होते, जय-जय होय भगोड़ों की।
चहुँदिश मौज निकम्मे करते, मेहनतकश भूखे मरते।
गधे दुलत्ती मार रहे हैं, देह कुट रही घोड़ों की।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.07.2019
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Sunday, June 30, 2019
786. घर में चूहे कूद रहे हैं (मुक्तक)
786. घर में चूहे कूद रहे हैं (मुक्तक)
देशभक्ति के हैं प्रवक्ता, सूरत मगर भगोड़ों की।
जो कल तक थे चोर-उच्चक्के, दौलत भरें करोड़ों की।
आज सत्य रिरियाता मिलता, झूठों के दरबारों में।
गधे दुलत्ती मार रहे हैं, नाल ठुक रही घोड़ों की।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.06.2019
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786. घर में हैं चूहे कूद रहे (मुक्तक)
घर में हैं चूहे कूद रहे, मुख पर है बात करोड़ों की।
कहने को हैं ये देशभक्त्त, सूरत क्यों मगर भगोड़ों की।
क्यों हाथ जोड़कर सत्य आज, रिरियाता झूठों के आगे।
चर रहे मजे से गधे देश, ठुक रही नाल क्यों घोड़ों की।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.06.2019
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785. ऐसे मुँह मत खोल तू (कुंडलिया)
785. ऐसे मुँह मत खोल तू (कुंडलिया)
ऐसे मुँह मत खोल तू, क्या तेरी मति भ्रष्ट।
पगले अब चुपचाप रह, भूल-भाल हर कष्ट।
भूल-भाल हर कष्ट, लगा तू भी जयकारा।
झंडा-डंडा पकड़, उन्हीं का बन हरकारा।
हाँ जी, हाँ जी, सीख, सीख ली, मैंने जैसे।
बेशक खाली उदर, खोल पर मुँह मत ऐसे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.06.2019
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Saturday, June 29, 2019
784. जब से उनके स्वप्न सँजोए (मुक्तक)
784. जब से उनके स्वप्न सँजोये (मुक्तक)
जब से उनके स्वप्न सँजोए, उन-सी भई उन में ही ढली है।
तब से कहें सब लाज-शर्म नहिं, घर बाहर यह बात चली है।
बारह महीना अरु तीसौ दिन, सुलगी सदा कंडा-सी जली है।
जिसने सखी सुख-चैन लिया है, कैसे कहूँ वह प्रीत भली है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.06.2019
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Friday, June 28, 2019
783. मेरी गरीबी तुम्हरे मुख (मुक्तक)
783. मेरी गरीबी तुम्हरे मुख (मुक्तक)
मेरी गरीबी तुम्हरे मुख पर, बनकर के मुस्कान खिली है।
जिस्म जलाया हाड़ गलाये, तलवों की सब खाल छिली है।
सूखी सिकुड़ी देह को ढकने, रोज फटी बनियान सिली है।
घर न मड़ैया, अन्न न पानी, भूख ज़लालत, मौत मिली है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.06.2019
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Wednesday, June 26, 2019
782. साजन से परमानंद दिया (मुक्तक)
782. साजन से परमानंद दिया (मुक्तक)
साजन ने परमानंद दिया, बदले में सारी शर्म लई है।
मन में कुछ भी अफसोस नहीं, क्या चीज मिली क्या चीज गई है।
जब से पिय से संपर्क हुआ, मम देह सखी कुंदन सी भई है।
उत्साह नया, जज़्बात नए, अनुभूति नई हर बात नई है।
पिय से सखि परमानंद मिला, बदले में सारी शर्म गई है।
मन में कुछ भी अफसोस नहीं, क्या चीज मिली क्या चीज दई है।
जब से उनसे संपर्क हुआ, मम देह सखी कुंदन सी भई है
उत्साह नया, जज़्बात नए, अनुभूति नई हर बात नई है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.06.2019
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Saturday, June 15, 2019
781. मिल गए तो मिलन को (मुक्तक)
781. मिल गए तो मिलन को (मुक्तक)
मिल गए तो मिलन को तू स्वीकार कर।
चाहे इनकार कर चाहे इकरार कर।
तेरी नजरों से घायल हृदय है मेरा।
यह है तुझ पर तू दुदकार या प्यार कर।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.06.2019
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780. अब सब सुनने में लगे (कुंडलिया)
780. अब सब सुनने में लगे (कुंडलिया)
अब सब सुनने में लगे, प्रश्न पू छता कौन।
दिल्ली पटना लखनऊ, सबके सब हैं मौन।
सबके सब हैं मौन, हर तरफ है सन्नाटा।
ज्यों शिष्यों को पकड़, गुरू जी ने हो डाँटा।
भूख, गरीबी, रोग, प्यास की बात हुई कब।
पीट-पीटकर माथ, सभी चुपचाप हुए अब।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.06.2019
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Tuesday, June 11, 2019
779. जहँ लोग कुलों के नामों पर (मुक्तक)
779. जहँ लोग कुलों के नामों पर (मुक्तक)
जहँ लोग कुलों के नामों पर, रहते हैं मद में चूर सखे।
जहँ नारी को कहते देवी, फिर भी रहती मजबूर सखे।
जहँ जातिपाँति जहँ ऊँचनीच, जहँ छुआछूत जहँ आडंबर।
जहँ मनुज हीन है पशुओं से, उस धर्म से रहना दूर सखे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.06.2019
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Sunday, June 09, 2019
778. संविधान पर है नहीं (कुंडलिया)
778. संविधान पर है नहीं (कुंडलिया)
संविधान पर है नहीं, जिन्हें तनिक विश्वास।
उनसे जन-कल्याण की, कैसे रक्खें आस।
कैसे रक्खें आस, तिरंगा जिन्हें न भाता।
फटफटियों पर बैठ, झुंड आतंक मचाता।
सिर्फ झूठ पाखंड, रहे जिनकी जुबान पर।
वे ही गाल बजाँय, आजकल संविधान पर।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.06.2019
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777. मिल गए तो मिलन कर लो (मुक्तक)
777. मिल गए तो मिलन कर लो (मुक्तक)
मिल गए तो मिलन कर लो स्वीकार तुम, हाथ को छोड़कर अब न जाना कहीं।
पूछकर देख लो अपने दिल से प्रिये, मैं यहीं था अभी भी यहीं हूँ यहीं।
तुम ही हो आस में, तुम ही विश्वास में, तुम ही अहसास में तुम हो हर साँस में।
मेरे तन-मन में तुम, मेरे जीवन में तुम, कौन सी है जगह जिसमें तुम हो नहीं।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.06.2019
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Saturday, June 08, 2019
776. भाग्य भू का जगा (मुक्तक)
776. भाग्य भू का जगा (मुक्तक)
भाग्य भू का जगा अवतरित जो हुई।
देह कंचन तेरी दूध से है धुई।
सिंधु, धरती, गगन सारे चरणों में हैं।
कौन सी है जगह जो न तूने छुई।
खेत, खलिहान, वन और उद्यान में।
हिम, नदी, घाटियों और मैदान में।
प्रेम को हर जगह पल्लवित तू करे।
जल में, थल में, मरुस्थल बियाबान में।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.06 2019
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Wednesday, June 05, 2019
775. वंश आगे बढ़ातीं हैं (मुक्तक)
775. वंश आगे बढ़ातीं हैं (मुक्तक)
वंश आगे बढ़ातीं हैं ये नारियाँ।
दीप बन जगमगातीं हैं ये नारियाँ।
ईंट-पत्थर से बनता है केवल मकां।
आ इन्हें घर बनातीं हैं ये नारियाँ।
प्रेम का स्रोत बनकर बहें नारियाँ।
प्यार पाकर के खुद ही ढहें नारियाँ।
जिंदगी भर निभाती हैं ये साथ को।
हाथ छोड़े नहीं जो गहें नारियाँ।
अपने गम को न अक्सर कहें नारियाँ।
दुःख दिल में छुपाए रहें नारियाँ।
झिड़कियाँ, गालियाँ, यातना बंदिशें।
जन्म से मृत्यु तक सब सहें नारियाँ।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.06.2019
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Sunday, June 02, 2019
774. हिय के भीतर तुम्हें बसाकर (मुक्तक)
774. हिय के भीतर तुम्हें बसाकर (मुक्तक)
हिय के भीतर तुम्हें बसाकर, प्रियतम तुम्हरे स्वप्न सजाए।
दर्पण में जब खुद को देखा, हम खुद ही खुद से शरमाए।
तब से उड़ती फिरूँ गगन में, जब से मुझको अंग लगाए।
नश्वर तन की बात करूँ क्या, तुम अवचेतन मन पर छाए।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.06.2019
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Saturday, May 25, 2019
772. आप करें तो (मुक्तक)
772. आप करें तो (मुक्तक)
आप करें तो संस्कार कहलाता है।
और करे तो तुम्हें नहीं यह भाता है।
हम मर जाएं तो चर्चा भी ना होती।
आप छींक दें समाचार बन जाता है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.05.2019
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771. गाँधी जी गायब हुए (कुंडलिया)
771. गाँधी जी गायब हुए (कुंडलिया)
गाँधी जी गायब हुए, जय - जय नाथूराम।
जिससे भी जब लाभ हो, उसका लीजे नाम।
उसका लीजे नाम, स्वार्थ को सिद्ध करे जो।
उन्हें रोज गरिआउ, देशहित हाय मरे जो।
इधर-उधर चहुँओर, चले हिंसा की आँधी।
जय हो नाथूराम, कर दिए गायब गाँधी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.05.2019
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771. गाँधी जी गायब हुए (कुंडलिया)
गाँधी जी गायब हुए, जय-जय नाथूराम।
जिससे भी जब लाभ हो, उसका लीजे नाम।
उसका लीजे नाम, स्वार्थ को सिद्ध करे जो।
उसमें ढूँढ़ों वोट, देशहित रोज मरे जो।
मारकाट छल-छंद, चली हिंसा की आँधी।
जय हो नाथूराम, कर दिए गायब गाँधी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.05.2019
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Thursday, May 16, 2019
769. नदियों पर कुछ दोहे
769. नदियों पर कुछ दोहे:
सागर, सरिता से कहे, काहे होत अधीर।
तेरी मेरी एक गति, एक हमारी पीर।
नदियाँ झीलें वाबड़ी, कुएं हुए जलहीन।
उस पर हम उत्थान की, बजा रहे हैं बीन।
जो थीं जीवनदायनीं, वे अब मरणासन्न।
अति जलदोहन से हुईं, नदियाँ सभी विपन्न।
मानव की करतूत से, सरिताएं बरबाद।
सड़तीं लाशें पन्नियां, कूड़ा-करकट गाद।
नदियों के उद्धार की,जिन-जिन से थी आस।
उनने ही दीन्हा दगा, मन में यह संत्रास।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.05.2019
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Sunday, May 12, 2019
767. जब नेताओं की भाषा यों (मुक्तक)
767. जब नेताओं की भाषा यों (मुक्तक)
जब नेताओं की भाषा यों, नीचे को गिरती जाएगी।
वीरों की लाशों पर चहुँदिश, जब राजनीत की जाएगी।
बोलो फिर कैसे भेजेंगी, सेना में माँएँ बच्चों को,
जिनके बेटों को मरने पर, हँस-हँस गाली दी जाएगी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.05.2019
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Sunday, May 05, 2019
766. माँग मुखौटों की चौतरफा (मुक्तक)
766. माँग मुखौटों की चौतरफा (मुक्तक)
माँग मुखौटों की चौतरफा, दर्पण कौन भला अब लेगा।
जिसका बिकता झूठ धड़ाधड़, मेरा सत्य भला कब लेगा।
कलई जैहै उतर एक दिन, भेद मुलम्मा का भी खुलियै।
कंचन के फिर दिन आएंगे, देखेंगे वह क्या तब लेगा।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.05.2019
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Friday, May 03, 2019
765. जिधर देखिए उधर मिलेंगे (मुक्तक)
765. जिधर देखिए उधर मिलेंगे (मुक्तक)
जिधर देखिए उधर मिलेंगे, भारत के भीतर दो भारत।
एक भूख में तड़प रहा है, एक यहाँ किलकोरें मारत।
एक लंगोटी में घूमत है, एक देह पर मलमल धारत।
एक फतह पर फतह कर रहा, एक रहा सदियों से हारत।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.05. 2019
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Wednesday, May 01, 2019
764. मजदूर दिवस पर कुछ दोहे।
764. मजदूर दिवस पर कुछ दोहे।
भूख प्यास बीमारियाँ, झेले नित व्यवधान।
आज उसी मजदूर पर, देंगें सब व्याख्यान।
मजदूरी आधी भई, ऊपर से अहसान।
फिर से दावा कर रहे, कर देंगे उत्थान।
रहे चूसते जोंक बन, समझा ना इंसान।
आज उसी को कह रहे, यह मेरा भगवान।
जिनने जूतों से अधिक, दिया नहीं सम्मान।
वे ही चरणों में पड़े, आज करें गुणगान।
हँसिया खुरपा फावड़ा, कन्नी तुला कुदाल।
झाड़ू रंदा उस्तरा, समझ रहें हैं चाल।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
01.05.2019
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Tuesday, April 30, 2019
763. जल से ही है जिंदगी (कुंडलिया)
763. जल से जिंदा यह जगत (कुंडलिया)
जल से जिंदा यह जगत, जल से ही है सृष्टि।
जल का हम संचय करें, व्यर्थ न हो जलवृष्टि।
व्यर्थ न हो जल वृष्टि, करें हम इसका रक्षण।
बर्वादी पर रोक, लगे तत्काल इसी क्षण।
जल का हो सम्मान, बहे नहिं यों ही नल से।
सब का है अस्तित्व, सुरक्षित केवल जल से।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.04.2019
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पानी से है जिंदगी, पानी से है सृष्टि।
पानी का संचय करें, व्यर्थ न जाए वृष्टि।
व्यर्थ न जाए वृष्टि, करें हम इसका रक्षण।
बर्वादी पर रोक, लगे तत्काल इसी क्षण।
पानी का रख मान, सुना नाना-नानी से।
मानव का अस्तित्व, सुरक्षित बस पानी से।
Sunday, April 28, 2019
762. जो थे कंचे काँच के (कुंडलिया)
762. जो थे कंचे काँच के (कुंडलिया)
जो थे कंचे काँच के, हुए सभी अनमोल।
असली हीरों का यहाँ, दो कौड़ी का मोल।
दो कौड़ी का मोल, बचा है सच्चाई का।
लुच्चों का है राज, जमाना लुच्चाई का।
देशभक्त कहलांय, दिखाते जौन तमंचे।
कोहनूर हो गए, काँच के जो थे कंचे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.04.2019
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