Tuesday, July 23, 2019

808. आजकल मगरूर बेहद (मुक्तक)

808. आजकल मगरूर बेहद (मुक्तक)

आजकल मगरूर बेहद, हो  रहीं हैं  कुर्सियाँ।
नफरतों के बीज घर-घर, बो रहीं हैं  कुर्सियाँ।
लाज लुटती तो लुटे, मरता कोई तो  वह मरे।
तानकर खद्दर की चादर, सो रहीं हैं कुर्सियाँ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.07.2019
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