Sunday, July 07, 2019

792. किस्मत के पट नहिं (मुक्तक)

792. किस्मत के पट नहिं (मुक्तक)

किस्मत के पट नहिं खुल पाए, थक गए इन्हें हम खुला-खुला।
मन की कालिख ना धुल पाई, तन गला दिया सखि धुला-धुला।
भगवान न  मिलने  को आए, थक गए  नयन  ये बुला-बुला।
खुद  अपने  को   ही   भूल  गए, अपनों  की कमियाँ भुला-भुला।

तन-मन-धन उसको सौंप दिया, बिस्तर पर अपने सुला-सुला।
उसने मुझको रसहीन किया, तन में अपना रस घुला-घुला।
हर बार किया मैंने सौदा, तखरी में खुद को तुला-तुला।
फिर भी प्रिय रूठ रहा मुझसे, अपने मुँह को वह फुला-फुला।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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