792. किस्मत के पट नहिं (मुक्तक)
किस्मत के पट नहिं खुल पाए, थक गए इन्हें हम खुला-खुला।
मन की कालिख ना धुल पाई, तन गला दिया सखि धुला-धुला।
भगवान न मिलने को आए, थक गए नयन ये बुला-बुला।
खुद अपने को ही भूल गए, अपनों की कमियाँ भुला-भुला।
तन-मन-धन उसको सौंप दिया, बिस्तर पर अपने सुला-सुला।
उसने मुझको रसहीन किया, तन में अपना रस घुला-घुला।
हर बार किया मैंने सौदा, तखरी में खुद को तुला-तुला।
फिर भी प्रिय रूठ रहा मुझसे, अपने मुँह को वह फुला-फुला।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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