Sunday, July 07, 2019

791. कंडा-सी सुलगत है (मुक्तक)

791. कंडा-सी सुलगत है (मुक्तक)

कंडा-सी  सुलगत है विरहन, तड़पत है जीती जर-जर के।
पिय  का  पथ  रोज  निहारत है, अँखियन  में  सपने भर-भर के।
कामिन चौकन्नी सहमी-सी, घर से निकसत है डर-डर के।
रड़ुआ   देखें,  चटकारे  लें, अधरों  पर रसना  धर-धर के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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