791. कंडा-सी सुलगत है (मुक्तक)
कंडा-सी सुलगत है विरहन, तड़पत है जीती जर-जर के।
पिय का पथ रोज निहारत है, अँखियन में सपने भर-भर के।
कामिन चौकन्नी सहमी-सी, घर से निकसत है डर-डर के।
रड़ुआ देखें, चटकारे लें, अधरों पर रसना धर-धर के।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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