814. नहिं काँवड़ हैं नहिं कावड़िए (मुक्तक)
नहिं काँवड़ हैं, नहिं कावड़िए, पहले-सा दिखे नहिं दमखम है।
सब शिविर पड़े सूने-सूने, सड़कों से गायब बम-बम।
पैरों में कमर में नहिं घुँघुरू, पायल भी नहीं, नहिं छम-छम है।
लगता है भाँग-धतूरे का, इस बार असर कुछ कम-कम है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.07.2019
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