788. जल को भर के रमणी निकली (दुर्मिल सवैया)
जल को भर के रमणी निकली, मटकी निज कम्मर पे धर के।
जस नीर नहीं सिगरा जग ही, कमनीय चली घट में भर के।
जल का, थल का, जड़-चेतन का, सबका सुख-चैन चली हर के।
मत पूछ अरे किसको-किसको, ललना निष्प्राण चली कर के।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.07.2019
*****
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.