794. सुख-चैन लिया निर्मोही ने (मुक्तक)
सुख-चैन लिया निर्मोही ने, दिनरात सजन मोय तरसावे।
जबरन उर के पट खोल सखी, पिय हिय के भीतर घुस जावे।
जब-जब मैं मन कि बात करूँ, बतियन से बालम बिलमावे।
अंतर में उठती हूक यही, मम प्रेम नजर क्यों नहिं आवे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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