798. सरकारें आईं गयीं (कुंडलिया)
सरकारें आईं गयीं, बेड़ी सकीं न काट।
दूरी राजा-रंक की, तिल भर सकीं न पाट।
तिल भर सकीं न पाट, जाति-धर्मों की खाई।
उलटे इनने ऊँच-नीच की आग लगाई।
न्याय कभी ना मिला, मिलीं केवल फटकारें।
सब नेता हैं एक, एक सी सब सरकारें।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.07.2019
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