790. हमरे जीवन की नियति यही (मुक्तक)
हमरे जीवन की नियति यही, जिंदा रहते हम मर-मर के।
सर्दी में गलाऐं तन अपना, गर्मी में जियें हम जर-जर के।
कबहूँ भर पेट न अन्न मिले, हारे हम मेहनत कर-कर के।
पैंतिस में पैंसठ के लगते, खाँसत हैं अब हम डर-डर के।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.07.2019
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