Saturday, July 06, 2019

790. हमरे जीवन की नियति यही (मुक्तक)

790. हमरे जीवन की नियति यही (मुक्तक)

हमरे जीवन  की  नियति  यही, जिंदा  रहते हम मर-मर के।
सर्दी में गलाऐं तन अपना, गर्मी  में जियें हम जर-जर के।
कबहूँ भर पेट न अन्न मिले, हारे हम मेहनत कर-कर के।
पैंतिस में पैंसठ के लगते, खाँसत हैं अब हम डर-डर के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.07.2019
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