797. है प्रीत की ये ही रीत सदा (मुक्तक)
है प्रीत की ये ही रीत सदा, इसमें दुख ज्यादा, खुशियाँ कम।
ऊपर से हँसना पड़ता, अंदर से अंतर रहता नम।
घर फूँक तमाशा देख सके, तब ही तू इसमें डाल कदम।
उल्फत इतनी आसान नहीं, हँस-हँसकर पीना पड़ता गम।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.07.2019
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