Sunday, August 25, 2019

831. गुरुजी ने कलुआ को डाँटा

831. गुरुजी ने कलुआ को डाँटा 


गुरुजी  ने  कलुआ  को  डाँटा,

तू   खड़े-खड़े    पेशाब   करे।

नालायक  खुद  तो  बिगड़ा है,

सारा    स्कूल    खराब    करे।


झल्लाकर   बोले  कलुआ  से,

चल घर चल  वहीं  बताऊँगा।

तेरे     उत्पातों     की     गाथा,

मुखिया को  जाय  सुनाऊँगा।


कर पकड़ ले चले कलुआ को,

गुरुजी को कुछ भी पता नहीं।

यह  ज्ञान   बाप  से  ही  पाया,

बेटे   की   कोई   खता   नहीं।


गुरुजी ने देखा  मुखिया  खुद,

छत पर चढ़कर  पेशाब  करे।

सोचें   जब    राजा  हो   ऐसा,

जनता  क्यों  ना  उत्पात करे।


कथनी को सुनता कौन यहाँ?

करनी  को  सब  अपनाते हैं। 

यह बात सत्य गुण-दोष सदा,

ऊपर    से    नीचे   आते   हैं।


कपड़ा   भी   वैसा  ही  होगा,

जैसा  कपड़े   का  सूत  रहा।

बेटा  क्यों   ना   मूते  छत  से,

बापू जब  छत  से  मूत  रहा।


रणवीर सिंह 'अनुपम'

25.08.2019

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