828. डेढ़ अक्ल थी सृष्टि में (कुंडलिया)
डेढ़ अक्ल थी सृष्टि में, कहता मेरा यार।
एक ईश ने दी उसे, आधे में संसार।
आधे में संसार, कौन है उसके जैसा।
दिन को मानो रात, कहा गर उसने ऐसा।
जो पाई है अरे, अक्ल की सिर्फ शक्ल थी।
क्यों भ्रम में जी रहा, सृष्टि में डेढ़ अक्ल थी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.08.2019
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