Monday, August 26, 2019

832. जीवन भर जूझत रहा (कुंडलिया)

832. जीवन भर जूझत रहा (कुंडलिया)

जीवन  भर  जूझत  रहा, लेकर  खाली पेट।
मरते लाखों  का हुआ, उसके  शव  का रेट।
उसके  शव  का  रेट, लगाते  नाच-नाचकर।
किसने कितना दिया, बताते  बाँच-बाँचकर।
घड़ियाली ले  अश्रु, करें  परिक्रमा तन-तन।
कैसी  है  यह  मौत, हाय यह  कैसा जीवन।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.08.2019
*****

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.