833. पनघट पीपल से कहे (कुण्डलिया)
पनघट, पीपल से कहे, बदल गये हैं गाँव।
मैं भी जर्जर हो चुका, बची न तुझमें छाँव।
बची न तुझमें छाँव, जरा का रोग लगा है।
यौवन के सब मीत, वृद्ध का कौन सगा है।
कहाँ नारियाँ दिखे, शीश पर दिखे कहाँ घट।
पायल चूड़ी बिना, आज सूना यह पनघट।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.09.2019
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