Wednesday, June 05, 2019

775. वंश आगे बढ़ातीं हैं (मुक्तक)

775. वंश आगे बढ़ातीं हैं (मुक्तक)

वंश   आगे   बढ़ातीं  हैं   ये  नारियाँ।
दीप बन  जगमगातीं  हैं  ये  नारियाँ।
ईंट-पत्थर से बनता है केवल  मकां।
आ इन्हें घर  बनातीं  हैं  ये  नारियाँ।

प्रेम का  स्रोत  बनकर  बहें  नारियाँ।
प्यार पाकर के खुद ही  ढहें नारियाँ।
जिंदगी भर  निभाती हैं ये  साथ को।
हाथ  छोड़े  नहीं   जो   गहें  नारियाँ।

अपने गम को न अक्सर कहें नारियाँ।
दुःख दिल  में   छुपाए   रहें   नारियाँ।
झिड़कियाँ, गालियाँ,  यातना  बंदिशें।
जन्म से मृत्यु तक  सब सहें  नारियाँ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.06.2019
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