Saturday, June 08, 2019

776. भाग्य भू का जगा (मुक्तक)

776. भाग्य भू का जगा  (मुक्तक)

भाग्य भू  का जगा अवतरित जो  हुई।
देह   कंचन   तेरी   दूध   से    है   धुई।
सिंधु, धरती, गगन  सारे  चरणों  में हैं।
कौन  सी  है  जगह  जो  न  तूने  छुई।

खेत,  खलिहान, वन  और  उद्यान  में।
हिम,  नदी,  घाटियों  और   मैदान  में।
प्रेम  को  हर जगह  पल्लवित  तू  करे।
जल में, थल में, मरुस्थल बियाबान में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.06 2019
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