783. मेरी गरीबी तुम्हरे मुख (मुक्तक)
मेरी गरीबी तुम्हरे मुख पर, बनकर के मुस्कान खिली है।
जिस्म जलाया हाड़ गलाये, तलवों की सब खाल छिली है।
सूखी सिकुड़ी देह को ढकने, रोज फटी बनियान सिली है।
घर न मड़ैया, अन्न न पानी, भूख ज़लालत, मौत मिली है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.06.2019
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