784. जब से उनके स्वप्न सँजोये (मुक्तक)
जब से उनके स्वप्न सँजोए, उन-सी भई उन में ही ढली है।
तब से कहें सब लाज-शर्म नहिं, घर बाहर यह बात चली है।
बारह महीना अरु तीसौ दिन, सुलगी सदा कंडा-सी जली है।
जिसने सखी सुख-चैन लिया है, कैसे कहूँ वह प्रीत भली है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.06.2019
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