Saturday, June 29, 2019

784. जब से उनके स्वप्न सँजोए (मुक्तक)

784. जब से उनके स्वप्न सँजोये (मुक्तक)

जब से उनके  स्वप्न सँजोए, उन-सी भई उन में ही ढली है।
तब से कहें सब लाज-शर्म नहिं, घर बाहर यह बात चली है।
बारह महीना अरु तीसौ दिन, सुलगी सदा कंडा-सी जली है।
जिसने सखी सुख-चैन लिया है, कैसे कहूँ  वह प्रीत भली है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.06.2019
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