Sunday, June 02, 2019

774. हिय के भीतर तुम्हें बसाकर (मुक्तक)

774. हिय के भीतर तुम्हें बसाकर (मुक्तक)

हिय के भीतर तुम्हें बसाकर, प्रियतम तुम्हरे  स्वप्न  सजाए।
दर्पण में जब खुद को देखा, हम खुद ही खुद से शरमाए।
तब से उड़ती फिरूँ गगन में, जब से मुझको अंग लगाए।
नश्वर तन की बात करूँ क्या, तुम अवचेतन मन पर छाए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.06.2019
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