Thursday, May 16, 2019

769. नदियों पर कुछ दोहे

769. नदियों पर कुछ दोहे:

सागर,  सरिता  से  कहे, काहे  होत  अधीर।
तेरी   मेरी   एक   गति, एक   हमारी   पीर।

नदियाँ  झीलें   वाबड़ी, कुएं   हुए  जलहीन।
उस पर हम उत्थान की, बजा  रहे  हैं  बीन।

जो  थीं   जीवनदायनीं, वे  अब   मरणासन्न।
अति जलदोहन से हुईं, नदियाँ सभी  विपन्न।

मानव   की  करतूत  से,  सरिताएं   बरबाद।
सड़तीं   लाशें  पन्नियां,  कूड़ा-करकट  गाद।

नदियों के उद्धार की,जिन-जिन से थी आस।
उनने  ही   दीन्हा  दगा, मन  में  यह  संत्रास।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.05.2019
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