Saturday, December 14, 2019

842. बनते-बनते बन गया (कुंडलिया)

842. बनते-बनते बन गया (कुंडलिया)

बनते-बनते   बन  गया,  इंसां  आदमखोर।
औरत  असुरक्षित  हुई, यहाँ-वहाँ चहुँओर।
यहाँ-वहाँ  चहुँओर, गली  में   चौराहों  पर।
तांडव  करें  पिशाच, हँसें  बेबस आहों पर।
नारी  सोचे  जिन्हें  जनें, वे   ही   हैं  हनते।
मनुज बन गया दनुज, आदमी बनते-बनते।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.12.2019
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