842. बनते-बनते बन गया (कुंडलिया)
बनते-बनते बन गया, इंसां आदमखोर।
औरत असुरक्षित हुई, यहाँ-वहाँ चहुँओर।
यहाँ-वहाँ चहुँओर, गली में चौराहों पर।
तांडव करें पिशाच, हँसें बेबस आहों पर।
नारी सोचे जिन्हें जनें, वे ही हैं हनते।
मनुज बन गया दनुज, आदमी बनते-बनते।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.12.2019
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