Sunday, May 17, 2015

99. कोई आकर आज कोई आकर आज बताए, बचपन बेबस इतना क्यों है?   जन्म से पहले, बाद जनम के, जीवन दुष्कर इतना क्यों है? बात नहीं है उन बच्चों की, जन्मे हैं जो महलों में, बात यहाँ मैं करता उनकी, जन्में जो खपरैलों में, बात यहाँ पर उनकी भी नहिं, जिनके तन पर मलमल है, बात यहाँ पर उनकी जिनको, केवल माँ का आँचल है,  एक को दूध, दवाई, भोजन, एक कुपोषण सहता क्यों है? कोई आकर आज बताए...1 भूखी माँ के संग उदर में, भूखा रहना पड़ता है, जिस तन से है उदगम होना, उससे लड़ना पड़ता है, खाली उदर अजन्मे शिशु को कब तक देगा संरक्षण, जर्जर तन किस भाँति भ्रूण का, कर सकता समुचित पोषण, यह मत पूछो इस हालत में, हृदय बेकल माँ का क्यों है?  कोई आकर आज बताए....2 हाँफ -हाँफकर लगी हुई है, भोर से सारा काम करे , तन-मन की पीड़ा से बोझिल, फिर भी न आराम करे, प्रसव के दिन भी इस माँ को, प्रसव का है वक्त नहीं, और देश में इस प्रसव को, मिले सुरक्षित जगह नहीं, चलती बस में, फुटपाथों पर, जन्म हमारा होता क्यों है? कोई आकर आज बताए....3 जियें कब तलक अह जग वालों, ऐसे अधपेटे रहकर, हाय गरीबी कब तक मेरा, खून पिएगी हँस-हँसकर,  दूध नहीं निकला करता है, अह जग सूखे स्तन से, कब तक शिशु पोषण पाएगा, माँ के इस पिंजर तन से, रोज रात को माँ से लिपटा, बच्चा भूखा सोता क्यों है? कोई आकर आज बताए....4 हम ही पंचर लगा रहे हैं, हम ही रिक्शा खींच रहे,  महानगर के चौराहों पर, भीख माँगते दीख रहे, हमको पाओगे ढाबों पर, हम ही मिलें दुकानों में, कूड़ा बीनत मिल जाएंगे, तुमको कूड़ेदानों में, प्रशासन को सिर्फ हमेशा, आँख मूँदना आता क्यों है? कोई आकर आज बताए....5 बीड़ी के इन कारखानों में, तकलीफ़ों को झेल रहा,  आतिशबाजी के संग बचपन, बारूदों से खेल रहा, कलम छीन कर इन हाथों में, क्यों बंदूकें थमा रहे? मेरे नन्हें नाजुक तनको, क्यों आतंकी बना रहे,  आज आचरण इंसानों का, पशुता से भी नीचा क्यों है ? कोई आकर आज  बताए....6 रणवीर सिंह 'अनुपम', मैनपुरी (उप्र) *****


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