रक्तबीज ने जन्म लिया है, काश्मीर की घाटी में,
आते ही बारूद बिछा दी, पावन पूजित माटी में,
इसने बस विश्वास किया है, आतंकी परिपाटी में,
शांति छोड़कर इसे भरोसा, है अब पत्थर बाजी में॥
आते ही बारूद बिछा दी, पावन पूजित माटी में,
इसने बस विश्वास किया है, आतंकी परिपाटी में,
शांति छोड़कर इसे भरोसा, है अब पत्थर बाजी में॥
सफल चुनावों में इसको तो, उग्रवाद का साथ दिखे,
काश्मीर के अमन-चैन में, पाकिस्तानी हाथ दिखे,
आतंकी का कहर न दिखता, न ही उसकी घात दिखे,
बात-बात में इसके मुँह से, सिर्फ दोमुँही बात दिखे॥
काश्मीर के अमन-चैन में, पाकिस्तानी हाथ दिखे,
आतंकी का कहर न दिखता, न ही उसकी घात दिखे,
बात-बात में इसके मुँह से, सिर्फ दोमुँही बात दिखे॥
सत्ता को पाते ही देखो, कुप्पा जैसा फूल रहा,
आँख बंद कर करे फैसला, अहंकार में झूल रहा,
अक्सर इसका कथन देश में, बनकर चुभता शूल रहा,
आतंकी की करे हिमायत, भारत माँ को भूल रहा॥
आँख बंद कर करे फैसला, अहंकार में झूल रहा,
अक्सर इसका कथन देश में, बनकर चुभता शूल रहा,
आतंकी की करे हिमायत, भारत माँ को भूल रहा॥
हुआ अपहरण जब रुबिया का, आतंकी छुड़वाने को,
चार-चार आतंकी छोड़े, उसकी जान बचाने को,
वो सारा कुछ भूल-भाल के, निकला हमें पढ़ाने को,
लगा छोड़ने देश के दुश्मन, फिर कोहराम मचाने को॥
चार-चार आतंकी छोड़े, उसकी जान बचाने को,
वो सारा कुछ भूल-भाल के, निकला हमें पढ़ाने को,
लगा छोड़ने देश के दुश्मन, फिर कोहराम मचाने को॥
हिम्मत थी तो अपनी बेटी, कर देता बलिदान तभी,
और अमर कर देता उसको, करते हम अभिमान सभी,
लेकिन ये तो वो कर पाते, जिनमें हो स्वाभिमान कभी,
कायर जीकर भी न पाता, सूरों का सम्मान कभी॥
और अमर कर देता उसको, करते हम अभिमान सभी,
लेकिन ये तो वो कर पाते, जिनमें हो स्वाभिमान कभी,
कायर जीकर भी न पाता, सूरों का सम्मान कभी॥
ये पोषक अलगाववाद का, उसका ही प्रशंसक है,
देशद्रोहियों का हितकारी और उनका शुभचिन्तक है,
यह तो यारो आस्तीन के, साँपों का संरक्षक है,
विघटनकारी नीति का पोषण, घातक है, विध्वंशक है॥
देशद्रोहियों का हितकारी और उनका शुभचिन्तक है,
यह तो यारो आस्तीन के, साँपों का संरक्षक है,
विघटनकारी नीति का पोषण, घातक है, विध्वंशक है॥
सीमा पार से आतंकी आ, अपने झंडे फहराते,
बात-बात पर भारत माँ को, ये गाली देकर जाते,
और इधर इन नासमझों का, हम सहयोग किये जाते,
संविधान और संप्रभुता से, कोसों दूर हुए जाते॥
बात-बात पर भारत माँ को, ये गाली देकर जाते,
और इधर इन नासमझों का, हम सहयोग किये जाते,
संविधान और संप्रभुता से, कोसों दूर हुए जाते॥
आज केंद्र की सत्ता में क्यों, होश नहीं बेहोशी है,
काहे को लाचारी इतनी, काहे को ख़ामोशी है,
याद सदा इतना रखना कि, निर्बल होता दोषी है,
उसको वो भी आँख दिखाता, जो कमजोर पडोसी॥
काहे को लाचारी इतनी, काहे को ख़ामोशी है,
याद सदा इतना रखना कि, निर्बल होता दोषी है,
उसको वो भी आँख दिखाता, जो कमजोर पडोसी॥
बात अहिंसा की अच्छी है, सीमा के भीतर रहकर,
हद से ज्यादा सहनशीलता, कहलाती जग में कायर,
उसको कब सम्मान मिला है, जो रहता नीचे दबकर,
दुनियाँ नमन तभी करती जब, बैठो छाती पर चढ़कर॥
हद से ज्यादा सहनशीलता, कहलाती जग में कायर,
उसको कब सम्मान मिला है, जो रहता नीचे दबकर,
दुनियाँ नमन तभी करती जब, बैठो छाती पर चढ़कर॥
हर आतंकी से लड़ना है, और उसके सहपाठी से,
इनका नाम मिटाना होगा, भारत माँ की माटी से,
आतंकी गर हमें भगाने, काश्मीर की घाटी से,
तो फिर इन्हें कुचलना होगा, गोली, डंडा, लाठी से॥
इनका नाम मिटाना होगा, भारत माँ की माटी से,
आतंकी गर हमें भगाने, काश्मीर की घाटी से,
तो फिर इन्हें कुचलना होगा, गोली, डंडा, लाठी से॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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