Saturday, May 16, 2015

40 मजदूर दिवस

"मजदूर दिवस"
 
जिंदगी की, अड़चनों की, नित नए व्यवधान की,
आज चर्चा हो रही, मजदूर के उत्थान की।।
 
आज के दिन कॉलेजों में, गोष्ठियों का दौर है,
सब लिए पर्ची खड़े, मज़दूर पर व्याख्यान की।।
 
जोंक बनकर खून को जो, चूसते अब तक रहे,
बात वो ही कर रहे, मजदूर के कल्यान की।।
 
जूतियों के भी बराबर, है जिसे समझा नहीं,
मंच पर उसके लिए, बातें करें सम्मान की।।
 
एक भी हल न मिला है, अड़चनों का आज तक,
नीतियां बनतीं रहीं, बातें हुईं अभियान की।।
 
गम किसी मजदूर का, बाँटे यहाँ फुरसत किसे,
बहुत पहले मौत यारो, हो चुकी इंसान की।।
 
उसकी महिमा के कसीदे, हर कोई है पढ़ रहा,
काम की बातें नहीं, बातें फकत गुणगान की।।
 
आदमी से आज उसको, देवता डाला बना,
हर तरफ से आ रही, आवाज स्तुतिगान की।।
 
शाम भी अब हो चली, और लोग भी चलने लगे,
हो चलीं तैयारियाँ अब, मंच से प्रस्थान की।।
 
फिर वही मजदूर आकर, कुर्सियों ढोने लगा,
कुछ घड़ी पहले मिली, पदवी जिसे भगवान की।।

रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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