'कल्पना' की कल्पना करता रहा।
हर हक़ीक़त से सदा डरता रहा।
ना 'लता' भी बन सकी जीवन लता।
जाने मुझसे हो गई थी क्या खता।
'नूरी' के दर्शन किए औ नूर के।
वो भी दिल बहला गई बस दूर से।
'राधिका', 'सीता' मिली औ 'गीतिका'।
जुड़ नहीं संबंध पाया प्रीत का।
'मोहनी' के मोह में भूला सभी।
प्यार की बाहों में था झूला कभी।
वो भी साथी ज़िंदगी की ना बनी।
हर 'किरन' ले छुप गई बदली घनी।
'आशा' को देखा तो इक आशा जगी।
हर तरफ ख्वाबों में वो बसने लगी।
छोड़कर वो एक दिन चलती बनी।
'राधा' भी नहिं श्याम की राधा बनी।
'सपना' से भी सपनों में मिलता रहा।
कुछ दिनों तक मुरझा दिल खिलता रहा।
फिर हकीकत की सुबह जब आ गयी।
खिलनेवाली हर 'कली' मुरझा गयी।
जब 'बसंती' से मिला, तब था बसंत।
लेकिन दो दिन बाद था, मौसम का अंत।
'माधुरी' नहिं बन सकी जीवन धुरी।
हँस-हँस के दिल ने सही उसकी छुरी।
'प्रतिभा' भी यारो मुझे एक दिन मिली।
मन के उपवन में 'चमेली' भी खिली।
भाग्य को मेरे 'खुशी' भाई नहीं।
जानेवाली लौटकर आई नहीं।
'उषा' आई तो चली 'शबनम' गयी।
मेरे ओंठों की 'तबस्सुम' भी गयी।
'प्रभा' भी एक दिन मिली प्रभात को।
वो भी ना समझी मेरे जज़बात को।
'रोशनी' आई तो दिल रोशन हुआ।
उसके हाथों ही मेरा शोषण हुआ।
'संध्या' के संग सिलसिला चलता रहा।
'दीपिका' संग भोर तक जलता रहा।
'छाया' की छाया न मुझको मिल सकी।
क्या करूँ 'माया' न मुझको मिल सकी।
'चाँदनी' भी चाँद से रूठी रही।
मेरी किस्मत इस तरह फूटी रही।
'कामनी' की कामना जाती रही।
बिन बताए 'भावना' जाती रही।
'रूपसी' निज रूप को दिखला गयी।
घुट-घुट के जीना मुझे सिखला गयी।
'वर्षा' ने वो प्यार की बरसात की।
हर कदम पर ज्यादती मेरे साथ की।
जाते - जाते गम का तोहफा दी गयी।
आशियाना सब बहाकर ले गयी।
'नयना' भी नयनों में कुछ दिन ही रही।
बिन बताए छोड़कर 'काजल' गई।
बात इतनी सी समझ आई नहीं।
मेरे मन को 'दिलरुबा' भाई नहीं।
'प्रेरणा' से प्रेरणा लेता रहा।
जो कमाया सब उसे देता रहा।
'रागिनी' का राग भी सुनता रहा।
सैकड़ों सपनों को मैं बुनता रहा।
'कविता' भी इक दिन बसी मतिमंद में।
'सोफिया' के भी पड़ा मैं फंद में।
पर मुझे हासिल नहीं कुछ भी हुआ।
खेलकर सौ बार देखा है जुआ।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
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