Saturday, May 16, 2015

68 पकड़कर इस तरह चौखट

पकड़कर इस तरह चौखट, अकेली क्यों खड़ी है तूँ,
मुशीबत कौन सी तुझ पर, अकेली जो खड़ी है तूँ,
सलौना रूप ये तेरा, आज उतरा हुआ है क्यों,
बनाकर भेष जोगिन सा, अकेली क्यों खड़ी है तूँ।।
 
केश की इन घटाओं को, काहे चहरे पे फैलाया,
गुलाबी ये बदन तेरा, दिखे कुछ आज मुरझाया,
मलिन मुख ये, शिथिल तन ये, बदन श्रीहीन क्यों तेरा,
दुखित हृदय लिए विरहन, अकेली क्यों खड़ी है तूँ।।
 
तेरे ये होंठ कलियों से, मगर रसहीन दिखते हैं,
नहीं चहरे पे वो रौनक, नयन छविहीन दिखते हैं,
समझ में कुछ नहीं आता, ये तुझको हो गया है क्या,
भुलाकर आज ये दुनियाँ, अकेली क्यों खड़ी है तूँ।।

रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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