Saturday, May 16, 2015

85 तुम्हारी चाह ने दिलबर

तुम्हारी चाह ने दिलबर, मेरा क्या हाल कर डाला।
मुझे मजबूर कर डाला, मुझे कंगाल कर डाला।॥
तेरी कातिल अदाओं ने, मुझे बर्बाद कर डाला,
तेरी आँखों के पानी ने, मुझे लाचार कर डाला॥
अरे ओ जानेमन तूने, मुझे बेहाल कर डाला,
परेशानी के तोहफों से है, मालामाल कर डाला॥
तेरे माँ-बाप ने चाहा, मगर चाहा तो क्या चाहा,
जरूरत जब पड़ी उनकी, तो बस इनकार कर डाला॥
किया जब फैसला हमने, ज़माने से बगावत का,
तो तुमने मुस्कराकर के, मुझे चुपचाप कर डाला॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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