कभी ताकती वो, पड़ोसी की लड़की,
नज़र भाँपती वो, पड़ोसी की लड़की॥
मेरे द्वार से वो, गुजरना किसी का,
कभी आगे बढ़ना, ठहरना किसी का,
कदम नापती वो, पड़ोसी की लड़की॥
वो छज्जे पे बिखरे, हुये बाल लेकर,
वो सेवों की सुर्खी, भरे गाल लेकर,
कभी झाँकती वो, पड़ोसी की लड़की॥
सुबह ही सुबह रोज़, उसका नहाना,
कड़क ठंड में रोज़, मंदिर को जाना,
बदन काँपती वो, पड़ोसी की लड़की॥
वो चोटी पे, मंदिर के, घंटे का बजना,
बड़े शौक से, सीढ़ियों पे वो चढ़ना,
मलिन हाँफती वो, पड़ोसी की लड़की॥
बच्चों के झूले पे, इतरा के चढ़ना,
शरारत पवन की, दुपट्टे का उड़ना,
जुबन झाँपती वो, पड़ोसी की लड़की॥
वो माथे की बिंदी, वो कानो की बाली,
वो कंगन, वो पायल, वो छमछम निराली,
गज़ब नाचती वो, पड़ोसी की लड़की॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
*****
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.