Saturday, May 16, 2015

44 बीबी है तूँ शरीफ की

बीबी है तूँ शरीफ की, इतना न तूँ उछल,
सूरत है तेरी चाँद सी, इसको छुपा के चल,
मानो हमारी बात, मत आँचल उठा के चल,
लोगों की भीड़-भाड़ से, दामन बचा के चल॥
 
बेटी है तूँ अमीर की, दिल भी अमीर रख,
शब्दों में शहद रख, चुभता न तीर रख,
आँचल में अपने तूँ, शीतल समीर रख,
औरों के दुख को देख, आँखों में नीर रख॥
 
अपनी पड़ोसिनों से, रिश्ता बना के रख,
दिल में उतारने को, रास्ता बना के रख,
लेकिन लफंगों से तूँ, दूरी बना के रख,
जीवन में शिष्टाचार, जरूरी बना के रख॥
 
साथी न छोड़ गमों की, झाड़ी तूँ देखकर,
बूढ़ा न समझ पती की, दाढ़ी तूँ देखकर,
मन दुखा पड़ोसन की, गाड़ी तूँ देखकर,
दिल न जला सहेली की, साड़ी तूँ देखकर॥
 
सभ्यता के नाम पर, कपड़े न तंग कर,
आधुनिक के नाम पर, नंगे न अंग कर,
क्लबों में तूँ इस तरह, इज्जत न भंग कर,
लौटकर बारह बजे, घर में न जंग कर॥

रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
      *****
नवगीत

बीबी है' तू शरीफ की', 
इतना न तू उछल।
सूरत है' तेरी' चाँद सी', 
इसको छुपा के' चल।


बेटी है' तू अमीर की', 
दिल भी अमीर रख,
शब्दों में' शहद को रख, 
चुभता न तीर रख,
आँचल में' बाँध कर के, 
शीतल समीर रख,
औरों का' दर्द देख के', 
आँखों में' नीर रख,

हँसकर के' पीना' सीख तू', 
दुनिया का' हर गरल।


अपनी पड़ोसिनों से,  
रिश्ता बना के' रख,
दिल में उतारने को, 
रास्ता बना के' रख,
लेकिन लफंगे' मर्द से', 
दूरी बना के' रख,
जीवन में' शिष्टाचार, 
जरूरी बना के' रख,

लोगों की' भीड़-भाड़ से', 
दामन बचा के' चल।


सभ्यता के नाम पर, 
कपड़े न तंग कर,
आधुनिक के नाम पर, 
नंगे न अंग कर,
क्लबों में तू इस तरह, 
इज्जत न भंग कर,
लौटकर बारह बजे, 
घर में न जंग कर,

फिसलन भरे जहान में, 
ऐसे न तू निकल।

रणवीर सिंह (अनुपम),
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