जलाकर मेरी बस्ती को, सुबह आकर बुझाते हो,
हमें दंगों में झुलसाकर, अमन का गीत गाते हो,
तुम्हें मतलब न हिन्दू से, न मतलब है मुसलमां से,
धर्म का नाम लेकर के, यहाँ झगड़े कराते हो।।
हमें दंगों में झुलसाकर, अमन का गीत गाते हो,
तुम्हें मतलब न हिन्दू से, न मतलब है मुसलमां से,
धर्म का नाम लेकर के, यहाँ झगड़े कराते हो।।
हमारी तंगहाली पर, फसल अपनी उगाते हो,
हमारी फूटी किस्मत पर, मुक़द्दर आजमाते हो
गरीबी, भुखमरी तुमने, किताबों में पढ़ी हरदम,
उन्हीं को सुनकर, पढ़कर के, हमें किस्से सुनाते हो।।
हमारी फूटी किस्मत पर, मुक़द्दर आजमाते हो
गरीबी, भुखमरी तुमने, किताबों में पढ़ी हरदम,
उन्हीं को सुनकर, पढ़कर के, हमें किस्से सुनाते हो।।
जरूरत के समय पर आ, हमें अपना बताते हो,
बनाते आ रहे उल्लू, अभी भी तुम बनाते हो,
मरें हम भूख से या फिर, गले में डाल कर फंदा,
हमारी लाश को कौओं सा, तुम मिल-बाँट खाते हो।।
बनाते आ रहे उल्लू, अभी भी तुम बनाते हो,
मरें हम भूख से या फिर, गले में डाल कर फंदा,
हमारी लाश को कौओं सा, तुम मिल-बाँट खाते हो।।
हमारी ही बदौलत से, सुबह और शाम खाते हो,
मगर अफ़सोस है इतना, हमें तुम भूल जाते हो,
हमारी मौत की चर्चा से, तुमको वास्ता इतना,
उसी चर्चा की चर्चा कर, अजी चर्चा में आते हो।।
मगर अफ़सोस है इतना, हमें तुम भूल जाते हो,
हमारी मौत की चर्चा से, तुमको वास्ता इतना,
उसी चर्चा की चर्चा कर, अजी चर्चा में आते हो।।
उदर की आग होती क्या, गरीबी क्या, ये क्या जानो,
जवानी में बुढ़ापा क्या, धँसी आँखों को क्या जानो,
मेरी फूटी कठौती से, तबे से, क्या तुम्हें मतलब,
रखी चूल्हे पे खाली इस, पतीली को क्या जानो।।
जवानी में बुढ़ापा क्या, धँसी आँखों को क्या जानो,
मेरी फूटी कठौती से, तबे से, क्या तुम्हें मतलब,
रखी चूल्हे पे खाली इस, पतीली को क्या जानो।।
गगनचुम्बी मकानों को, जमीने चाहिए मेरी,
अमीरों को, दलालों को, जमीने चाहिए मेरी,
हमें छत भी मयस्सर न, करा पायीं हैं सरकारें,
अरबपतियों को देने को, जमीने चाहिए मेरी।।
अमीरों को, दलालों को, जमीने चाहिए मेरी,
हमें छत भी मयस्सर न, करा पायीं हैं सरकारें,
अरबपतियों को देने को, जमीने चाहिए मेरी।।
तुम्हें मलहम से क्या मतलब, तुम्हें तो चोट से मतलब,
तुम्हें अच्छों से क्या मतलब, तुम्हें तो खोट से मतलब,
तुम्हें कुछ फर्क न पड़ता, अजी ये जानते हम भी,
तुम्हें मतलब कहाँ हमसे, तुम्हें तो वोट से मतलब।।
तुम्हें अच्छों से क्या मतलब, तुम्हें तो खोट से मतलब,
तुम्हें कुछ फर्क न पड़ता, अजी ये जानते हम भी,
तुम्हें मतलब कहाँ हमसे, तुम्हें तो वोट से मतलब।।
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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