सिर्फ स्कूल में, हुशियार नहीं होता कोई,
गिर के तरबूज पर, तलवार नहीं होता कोई॥
यहाँ हर एक अपने कर्मफल को भोगेगा,
जहां में इसका, हकदार नहीं होता कोई॥
किसी को देख के, ख़्वाहिश है जगी जीने की,
हादसा ऐसा हर वार नहीं होता कोई॥
देह खुद बिकने के सौ ढूँढ तरीके लेती,
जिश्म जिसमें न मिले, बाज़ार नहीं होता कोई॥
हमने नैतिकता का पैमाना ऐसा खींचा है,
आज व्यभिचार भी, व्यभिचार नहीं होता कोई॥
यौन सुख, गाड़ियां, होटल के मजे हैं जिसमें,
इससे आसां, रूज़गार नहीं होता कोई॥
दिलों की बात न, जिश्मों का सिर्फ रिश्ता है,
ऐसे संबंधों में एतवार नहीं होता कोई॥
लाख समझाने पर हाँ की, तो भला क्या की तुमने,
ऐसा इजहार भी इजहार नहीं होता कोई॥
शर्त रखकर के चाहा तो हमें क्या चाहा,
प्यार तो प्यार है व्यापार नहीं होता कोई॥
तेरे इक इश्क ने क्या हाल किया है मेरा,
जैसा लाचार हूँ, लाचार नहीं होता कोई॥
आखिरी वक्त पर मैयत पे मेरी आए हो,
ऐसा दीदार भी दीदार नहीं होता कोई॥
जंग लग जाना जड़ता की निशानी होता,
घिस के मिट जाना, बेकार नहीं होता कोई॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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