मापनी - 1222 1222 1222 1222
व्यथित हृदय में' तुम मेरे, कहाँ अनुराग पाओगे।
जलाती रूह को रहती, यहाँ वो आग पाओगे॥
जलाती रूह को रहती, यहाँ वो आग पाओगे॥
तुम्हारे प्रेम के आगे, जहाँ में और भी कुछ है,
हर्षो-उल्लास के आगे, तपन और भूख भी कुछ है,
गमे-दुनियाँ का' देखोगे, तो' जीवन जान जाओगे॥
हर्षो-उल्लास के आगे, तपन और भूख भी कुछ है,
गमे-दुनियाँ का' देखोगे, तो' जीवन जान जाओगे॥
कहीं तन पर नहीं चिथड़े, कहीं है लाश मलमल पर,
कहीं पथ पर बिछे काटें, कहीं हैं पाँव मखमल पर,
हकीकत देख इस जग की, नशे से जाग जाओगे॥
कहीं पथ पर बिछे काटें, कहीं हैं पाँव मखमल पर,
हकीकत देख इस जग की, नशे से जाग जाओगे॥
नुमाइश जिस्म की करके, कोई शोहरत कमाती है,
फटे पैबंद पर कोई, नया पैबद लगाती है,
कथित इन सभ्य लोगों में, कई निर्लज्ज पाओगे॥
फटे पैबंद पर कोई, नया पैबद लगाती है,
कथित इन सभ्य लोगों में, कई निर्लज्ज पाओगे॥
पहनकर अल्प वस्त्रों को, 'मदर' आदर्श बतलाकर,
दिखाती रूप औ तन को, भरे मंचों पे' जो जाकर,
ऐसी' बालाओं' को अब तो, सभी शहरों में' पाओगे।।
दिखाती रूप औ तन को, भरे मंचों पे' जो जाकर,
ऐसी' बालाओं' को अब तो, सभी शहरों में' पाओगे।।
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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