Sunday, May 17, 2015

98 आज के हालात में सिर्फ

आज के हालात में, सिर्फ यही चारा है,
छीन लो हक अपना, लोगो जो तुम्हारा है॥
 
मेरी इस आवाज़ को, कत्ल कर नहीं सकते,
मेरी ये आवाज़ तो, क्रांति का नगारा है॥
 
चुनके जिसे भेजा था, काम कुछ करने को,
मेरा दुर्भाग देखो, निकला वो नकारा है॥
 
खर्च रुपया करके, काम चार आने का,
कैसी ये तरक्की है, कैसा ये नारा है॥
 
शोलों को न भड़काओ, मेरा घर जलाने को,
मेरे ही बगल में तो, देखो घर तुम्हारा है॥
 
सब्र को जो बांधे हैं, उसकी एक सीमा है,
दरिया जब उफनेगा, बचता न किनारा है॥
 
बाद तेरे जाने के, दुनियाँ चल नहीं सकती,
ऐसा कभी होता है नहीं, भ्रम ये तुम्हारा है॥
 
ऐसे मत इतराओ, रूप-औ-जवानी पे,
दोनों छोड़ जाएंगे, इनका क्या सहारा है॥
 
ऐसी क्या है मजबूरी, ऐसी क्या परेशानी,
जिसके लिए पर्दे पर, जिस्म ये उघारा है॥
 
ऐसे मत तन को दिखा, शान कम होती है,
मेरी तो नशीयत है, फैसला तुम्हारा है॥
 
आपको भरोसा नहीं, मेरी वफादारी पे,
फिर भी हर मुश्किल में, आपने पुकारा है॥
 
नारियों की इज्जत तो, हमें जां से प्यारी है,
जिसके लिए पुरुषों ने, पुरुषों को मारा है॥
 
बात रहनुमाओं की, तीर जैसी चुभती है,
रोज़ तीस रुपयों में, होता क्या गुजारा है॥
 
इनको कोई मतलब न, मेरी ज़िंदगानी से,
बातें ये भड़काऊ, इसी का इशारा है॥
 
मेरी ये मजलूमी, उनका दिया तोहफा है,
कुछ हाथ उनका है, और कुछ हमारा है॥
 
बातें तो अमन की हैं, लहजा भड़काऊ है,
आपकी बातों में, जंग का इशारा है॥
 
आपकी फितरत से, खूब हम वाकिफ हैं,
आपका रचाया हुआ, खेल ये सारा है॥
 
आप जिसे छू लेतीं, सोना बन जाता है,
आज तो बुलंदी पर, आपका सितारा है॥
 
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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