अब तो खुदा के बाद आती है अफ़सरी,
क्या-क्या न यारो मुफ्त में, पाती है अफ़सरी॥
क्या-क्या न यारो मुफ्त में, पाती है अफ़सरी॥
पहले तो रेस्टोरेंट में, आता था पसीना,
अब तो डिनर “हयात” में, खाती है अफ़सरी॥
अब तो डिनर “हयात” में, खाती है अफ़सरी॥
अफसर नहीं थे, पास में इक साइकिल न थी,
अफसर हुये तो “मर्स” में जाती है अफ़सरी॥
अफसर हुये तो “मर्स” में जाती है अफ़सरी॥
निर्दोष को कानून, घुमाता है दर-बदर,
मुलजिम को मुस्तैदी से, बचाती है अफ़सरी॥
मुलजिम को मुस्तैदी से, बचाती है अफ़सरी॥
जनता को चूसकर, पैसों को लूटकर,
कोठी क्या आलीशान, बनाती है अफ़सरी॥
कोठी क्या आलीशान, बनाती है अफ़सरी॥
लोगों को पीने के लिए, पानी न मिल रहा,
विस्की में डूबती है, नहाती है अफ़सरी॥
विस्की में डूबती है, नहाती है अफ़सरी॥
लाशों को रौंदकर, दामन को पोंछकर,
आती है अफ़सरी, जाती है अफ़सरी॥
आती है अफ़सरी, जाती है अफ़सरी॥
अपना चरित्र अब तो, चबन्नी में बेचकर,
ताबूत, कफन बेचकर, खाती है अफ़सरी॥
ताबूत, कफन बेचकर, खाती है अफ़सरी॥
आदर्श, उच्च-सोच, ईमान अब कहाँ,
दस्खत के हिसाबों से, कमाती है अफ़सरी॥
दस्खत के हिसाबों से, कमाती है अफ़सरी॥
दस में से एक बार, दफ्तर में मिलेंगे,
ऊपर से आँखें लाल, दिखाती है अफ़सरी॥
ऊपर से आँखें लाल, दिखाती है अफ़सरी॥
औरत जो मदद माँगे, जाकर के पुलिस से,
उसका ही जिश्म नोंचकर, खाती है अफ़सरी॥
उसका ही जिश्म नोंचकर, खाती है अफ़सरी॥
गुणवान, काबिल, नेकदिल, अफसर भी बहुत है,
जिनकी वजह से इज्जतें, पाती है अफ़सरी॥
जिनकी वजह से इज्जतें, पाती है अफ़सरी॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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