प्रेम का इजहार गर, इक बार तुम मुख से करो,
देखिए फिर खून में, कैसी उमंग आ जाए॥
देखिए फिर खून में, कैसी उमंग आ जाए॥
आप माने, या न माने, पर हमें विश्वास है,
देख ले रंग-रूप तो, उपवन में रंग आ जाए॥
देख ले रंग-रूप तो, उपवन में रंग आ जाए॥
संगमरमर ये बदन, जल में उतर जाए अगर,
सुस्त दरिया में कोई, नूतन तरंग आ जाए॥
सुस्त दरिया में कोई, नूतन तरंग आ जाए॥
आपकी मदहोश नज़रों, में असर कुछ इस तरह,
बेखुदों पर गर पड़ें, तो फिर से भंग छा जाए॥
बेखुदों पर गर पड़ें, तो फिर से भंग छा जाए॥
देख ले कंदर्प जो, तो फिर रती को, दे भुला,
वो किसी से क्यों मिले, जो तेरा संग पा जाए॥
वो किसी से क्यों मिले, जो तेरा संग पा जाए॥
कौन कहता है कि बिगड़े, हैं सँभल सकते नहीं,
आपको जो देख ले, जीने का ढंग आ जाए॥
आपको जो देख ले, जीने का ढंग आ जाए॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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