Saturday, May 16, 2015

53 जी॰ बी॰ रोड दिल्ली

मापनी - 2122  2122  2122  212

औरतों का राज है  सरकार  जी॰ बी॰ रोड पर।
खूबसूरत  देह  का  दरबार  जी॰ बी॰  रोड पर।
हर तरफ  श्रृंगार  ही  श्रृंगार  जी॰ बी॰ रोड पर।
एक को देखन चलो तो  चार जी॰ बी॰ रोड पर।

जींस भी, स्कर्ट भी सलवार जी॰ बी॰ रोड पर।
साड़ियों में  हुश्न का  दीदार  जी॰ बी॰ रोड पर।
रूप का औ देह का व्यापार जी॰ बी॰ रोड पर।
एड्स जैसे रोग  का बाज़ार  जी॰ बी॰ रोड पर।
 
भड़ुओं की दादागिरी  तकरार  जी॰ बी॰  रोड पर।
जिस्म  की  सौदागिरी  लाचार  जी॰ बी॰  रोड पर।
लटके, झटके हर अदा हथियार जी॰ बी॰ रोड पर।
है न आसां जिस्म  का रुज़गार  जी॰ बी॰ रोड पर।
 
हर तरफ आहें  ही आहें  यार जी॰ बी॰ रोड पर।
भूख औ भूखी  निगाहें  यार  जी॰ बी॰ रोड पर।
पान-गुटका से भरा मुख लार जी॰ बी॰ रोड पर।
गाल पर  बदबू भरी  पुचकार जी॰ बी॰ रोड पर।
 
हूरें  परियाँ  झाँकती  मिलती हैं  जी॰ बी॰ रोड पर।
चीजें ग्राहक ताकती मिलती  हैं  जी॰ बी॰ रोड पर।
आम औ मुमताज़ भी मिलती हैं जी॰ बी॰ रोड पर।
सूरतें   बेदाग  भी   मिलती  हैं  जी॰ बी॰  रोड पर।
 
नीचता के साथ ही  तहजीब  जी॰ बी॰ रोड पर।
कईयों के रुज़गार की है नीव जी॰ बी॰ रोड पर।
पंद्रह से पचपन वर्ष की चीज़ जी॰ बी॰ रोड पर।
बेवशी, लाचारियाँ औ खीज  जी॰ बी॰ रोड पर।
 
हो  रही  है  नोट की  बरसात  जी॰ बी॰ रोड पर।
कितनों के अरमान की बारात जी॰ बी॰ रोड पर।
सच से  कोसों दूर हैं  जज़्बात जी॰ बी॰ रोड पर।
सिर्फ औरत मर्द की है  जात  जी॰ बी॰ रोड पर।

बेवशी  औ  नर्क  की  आवाज  जी॰ बी॰ रोड पर।
रोज़ बजता  पर  अधूरा  साज  जी॰ बी॰ रोड पर।
जो जगह थी कल वही है आज जी॰ बी॰ रोड पर।
सैकड़ों  की  रोज लुटती  लाज जी॰ बी॰ रोड पर।
 
हंसनी  पर  रौब  झाड़े  चील   जी॰ बी॰ रोड पर।
आत्मा में धँस रही ज्यों कील  जी॰ बी॰ रोड पर।
ज़िंदगी लगती मसोसी  खील  जी॰ बी॰ रोड पर।
हर तरफ है आँसुओं की झील जी॰ बी॰ रोड पर।

किस कदर से है लगा घमसान जी॰ बी॰ रोड पर।
नेक जी॰ बी॰ रोड पर बेईमान जी॰ बी॰ रोड पर।
हर  तरह  हर  रूप का  इंसान जी॰ बी॰ रोड पर।
सभ्य जी॰ बी॰ रोड पर शैतान जी॰ बी॰ रोड पर।
 
राह को ताकता हुआ मिजवान जी॰ बी॰ रोड पर।
आदमी कुछ देर  का महमान  जी॰ बी॰  रोड पर।
पहला-पहला शक्स कुछ हैरान जी॰ बी॰ रोड पर।
हफ्ता  लेने   में  लगा  दीवान  जी॰ बी॰  रोड पर।
 
अल्पज्ञानी भी  यहाँ  विद्वान  जी॰ बी॰  रोड  पर।
चतुर जी॰ बी॰ रोड पर नादान जी॰ बी॰ रोड पर।
चोलियों के पट खुलें अरमान  जी॰ बी॰ रोड पर।
देखता  तस्वीर  से  भगवान  जी॰ बी॰  रोड  पर।
 
हर तरफ बिखरा हुआ समान  जी॰ बी॰ रोड पर।
सच कहूँ तो गंदगी  की  खान जी॰ बी॰ रोड पर।
सभ्यता का  हो रहा अपमान  जी॰ बी॰ रोड पर।
आदमी की हो  रही पहिचान  जी॰ बी॰ रोड पर।

खिलखिलाती हर हँसी वीरान  जी॰ बी॰ रोड पर।
बेवशी और भूख की मुस्कान  जी॰ बी॰  रोड पर।
बालिकाओं  का लुटे  सम्मान  जी॰ बी॰  रोड पर।
हुक्मरानों का नहीं क्यों? ध्यान जी॰ बी॰ रोड पर। 

रणवीर सिंह 'अनुपम', मैनपुरी (उप्र)
*****

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.