Saturday, May 16, 2015

62 जब भोर भुरारे इक कागा

जब भोर भुरारे इक कागा, आँगन में आय पुकार कियो,
गृह-वधु मन ही मन हर्षित हो, जा कागा को सत्कार कियो,
मन में लेके पिय की यादें, घर, आँगन, द्वार बुहार लियो,
पिय दर्शन की चाहत हिय में, हँस-हँस के सारा कार कियो॥
 
ले गागर, पनघट पे पहुँची, घट बाँध कुएं में डार दियो,
ऊपर खींचत, फिर छोड़ देत, हिचकोलन की बौछार कियो,
तन की शिथलन कछु दूर भई, तब कुएं से कुम्भ निकार लियो,
गागर को कम्मर पे धरिके, मुख ऊपर घूँघट  डार लियो॥
 
कहूँ पैर धरत, कहुँ पैर परत, मदमस्त चले गजगामिन सी,
चहरे पे चमकत चाँद खिले, दाँतों में चमक इक दामिन सी,
ग्रीवा चंदन तरु में लिपटी, चोटी अलसाई नागिन सी,
आलस में डूबा नवयौवन, अँखिअन में खुमारी कामिन सी॥
 
पतली सी कमरिया बल खाबत, लचकत जाबत ज्यों डाली सी,
पग धरत धरा, झनकत घुँघुरू, छेड़त इक तान निराली सी,
घूँघट से आभा फूट रही, लागे सूर्योदय लाली सी,
रवि-रश्मि पड़ी, जब नथनी पे, गई चमक कान की बाली भी॥
 
झनकार सुनी जब घुँघुरुन की, बहुतन का मन बौराय गयो,
छा गई मोहनी मौसम में, हर कोई सुधि बिसराय गयो,
फिर मुख मयंक को देखन हित, इक रसिक चकोरा आय गयो,
या फिर रसपान हेतु भ्रमर, कोइ आय कली पे छाय गयो॥
 
तब नैन बचा, बिन बात किये, गोरी घर ओर को भाग चली,
मन घबराबत, लमकत जाबत, पैरन की फुर्ती जाग चली,
कुछ दूर निकर, भय न्यून भयो, मन में अब सोचत जात चली,
अब तौ प्रियतम से कह अपने, दीहैं भड़ुअन की छोड़ गली॥
 
आँगन में पहुँची जब गोरी, फिर झटपट बंद द्वार कियो,
फिर पोंछ उठी लथपथ काया, ले बीजन मुख पे ब्यार कियो,
उबटन करने फिर बैठ गई, हर अंग का दुई-दुई बार कियो,
हल्दी-चंदन  स्पर्शन ने, गोरा तन और निखार दियो॥
 
नाना विधि धोबत अंगन को, मल-मल के तन स्नान कियो,
फिर समय उचित परिधान पहन, जा प्रभु का स्तुतिगान कियो,
आँगन में तुलसी को पूजति, हर्षित मन से जलदान कियो,
मन में ले कुशल कामना फिर, परदेशी पिय को ध्यान कियो॥
 
श्यामल केशों का नीर छटक, फिर नूतन चोटी गुहि डाली,
कंगन, चूड़ी, झुमकी पहनी, फिर नाक में नवनथनी डाली,
मुख पे मयंक, कुंदन काया, ओंठों पे चमके कछु लाली,
सोलह श्रंगार करे गोरी, पिय अगवानी में मतवाली॥

रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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