दफ़न कितनी हो गईं हैं, बस्तियाँ इस बोतल में,
ज़िंदगी की कितनी डूबी, कस्तियाँ इस बोतल में॥
ज़िंदगी की कितनी डूबी, कस्तियाँ इस बोतल में॥
किस हुकूमत को पता है, ताव इस सैलाव का,
कितने घर की बुझ गईं हैं, बत्तियाँ इस बोतल में॥
कितने घर की बुझ गईं हैं, बत्तियाँ इस बोतल में॥
टूट जाता आदमी पर, छूटती बोतल नहीं,
कौन सी आखिर छुपीं है, मस्तियाँ इस बोतल में॥
कौन सी आखिर छुपीं है, मस्तियाँ इस बोतल में॥
उलझनों का हल नहीं है, मैकदे के द्वार पर,
रख गईं हैं, गिरवी कितनी, हस्तियाँ इस बोतल में॥
रख गईं हैं, गिरवी कितनी, हस्तियाँ इस बोतल में॥
शाह चौपट हो गए, मिट गए सम्राट भी,
अनगिनत तख्तों की गल गईं, तख्तियाँ इस बोतल में॥
अनगिनत तख्तों की गल गईं, तख्तियाँ इस बोतल में॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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