वो काव्य क्या, कैसी कविता,
जिसके भीतर, प्रवाह नहीं,
वो लेख क्या, कैसा लेखन,
पढ़कर जागे, उत्साह नहीं॥
जिसके भीतर, प्रवाह नहीं,
वो लेख क्या, कैसा लेखन,
पढ़कर जागे, उत्साह नहीं॥
वो जीवन मौत से बदतर है,
जिसमें जीने का चाव नहीं,
वो कवि कैसा, लेखक कैसा,
जिसमें आलोचक भाव नहीं॥
जिसमें जीने का चाव नहीं,
वो कवि कैसा, लेखक कैसा,
जिसमें आलोचक भाव नहीं॥
वो राह क्या, राही कैसा,
जिसकी किस्मत में खार नहीं,
वो नाव क्या, नाविक कैसा,
जो चीर सके मझधार नहीं॥
जिसकी किस्मत में खार नहीं,
वो नाव क्या, नाविक कैसा,
जो चीर सके मझधार नहीं॥
वो कलम नहीं, इक नरकुल है,
जिसके शब्दों में सार नहीं,
वो क्या मानव, क्या मानवता,
जिसमें करुणा और प्यार नहीं॥
जिसके शब्दों में सार नहीं,
वो क्या मानव, क्या मानवता,
जिसमें करुणा और प्यार नहीं॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
******
******
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.