बात फिर किन की करें, गर नारियों की न करें,
उन पर होते जुल्म और, दुश्वारियों की न करें।।
उन पर होते जुल्म और, दुश्वारियों की न करें।।
मैं उन्हें कैसे हितैषी, मान लूँ इस देश का,
बात जो निज कौम की, लाचारियों की न करें।।
बात जो निज कौम की, लाचारियों की न करें।।
काहे के माली हैं वो, काहे के हैं वो बागवां,
बात जो अपने चमन की, क्यारियों की न करें।।
बात जो अपने चमन की, क्यारियों की न करें।।
दूसरे देशों की सेहत, की फिकर जिनको पड़ी,
बात वो निज देश की, बीमारियों की न करें।।
बात वो निज देश की, बीमारियों की न करें।।
बात करिए आज टूटी, झोपड़ी और गाँव की,
बात यहाँ पर महल की, ऊँचाइयों की न करें।।
बात यहाँ पर महल की, ऊँचाइयों की न करें।।
इन बड़ी बातों की चर्चा, का कोई मतलब नहीं,
बात जब तक भूख और बेकारियों की न करें।।
बात जब तक भूख और बेकारियों की न करें।।
बात कोठे से चली, पूरी न होगी तब तलक,
बात जब तक आधुनिक, व्यभिचारियों की न करें।।
बात जब तक आधुनिक, व्यभिचारियों की न करें।।
करना है तो बात करिये, आचरण, ईमान की,
बात लोभी, लालची, व्यापारियों की न करें।।
बात लोभी, लालची, व्यापारियों की न करें।।
शांति की बातें ये दुनियाँ, तब तलक सुनती कहाँ?
बात जब तक जंग की, तैयारियों की न करें।।
बात जब तक जंग की, तैयारियों की न करें।।
लेखकों को चाहिए कि, लेखनी निर्भय रखें,
बात जनता की करें, दरबारियों की न करें।।
बात जनता की करें, दरबारियों की न करें।।
उनकी बातों पर भरोसा, किस तरह 'अनुपम' करूँ,
जो कभी भी बात, जिम्मेदारियों की न करें।।
जो कभी भी बात, जिम्मेदारियों की न करें।।
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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