न वादों के झूठे, महल चाहिए अब।
मुझे फैसलों पर अमल चाहिए अब॥
मुझे फैसलों पर अमल चाहिए अब॥
जो चाही थी कुर्सी, वो कुर्सी दिला दी,
मुझे मुश्किलों का है हल चाहिए अब।।
मुझे मुश्किलों का है हल चाहिए अब।।
नहीं चाहिए कौमी दंगों की सियासत,
मुझे हर किसी की कुशल चाहिए अब।।
मुझे हर किसी की कुशल चाहिए अब।।
न आकर के मैयत पे मजमा लगाओ,
मुझे गाँव में न खलल चाहिए अब।।
मुझे गाँव में न खलल चाहिए अब।।
दिखा आइना तू असलियत हमारी,
मुझे मेरा चेहरा असल चाहिए अब।।
मुझे मेरा चेहरा असल चाहिए अब।।
मुझे मेरे साथी को, खुद दो समझने,
नहीं मीडिया का दखल चाहिए अब।।
नहीं मीडिया का दखल चाहिए अब।।
बहुत दिन से खाली उदर है हमारा,
न कविता, न कोई गजल चाहिए अब।।
न कविता, न कोई गजल चाहिए अब।।
मुझे साफ नदियाँ, हवा, पेड़, पौधे,
मुझे मेरे बच्चों का कल चाहिए अब।।
मुझे मेरे बच्चों का कल चाहिए अब।।
न बातें, न भाषण, न ये रहनुमाई,
मुझे मेरी मेहनत का फल चाहिए अब।।
मुझे मेरी मेहनत का फल चाहिए अब।।
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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