Saturday, May 16, 2015

38 न वादों के झूठे महल चाहिए अब

न वादों के झूठे, महल चाहिए अब।
मुझे फैसलों पर अमल चाहिए अब॥
 
जो चाही थी कुर्सी, वो कुर्सी दिला दी,
मुझे मुश्किलों का है हल चाहिए अब।।
 
नहीं चाहिए कौमी दंगों की सियासत,
मुझे हर किसी की कुशल चाहिए अब।।
 
न आकर के मैयत पे मजमा लगाओ,
मुझे गाँव में न खलल चाहिए अब।।
 
दिखा आइना तू असलियत हमारी,
मुझे मेरा चेहरा असल चाहिए अब।।
 
मुझे मेरे साथी को, खुद दो समझने,
नहीं मीडिया का दखल चाहिए अब।।
 
बहुत दिन से खाली उदर है हमारा,
न कविता, न कोई गजल चाहिए अब।।
 
मुझे साफ नदियाँ, हवा, पेड़, पौधे,
मुझे मेरे बच्चों का कल चाहिए अब।।
 
न बातें, न भाषण, न ये रहनुमाई,
मुझे मेरी मेहनत का फल चाहिए अब।।
 
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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