Saturday, May 16, 2015

73 "डर पनप रहा भगवानों में"

जो नशा जवानी में होता,
वो कहाँ मिले मैखानों में,
जो मौज उठे नवयौवन में
वो नहीं मिले पैमानों में॥

इस दिल के खालीपन को तुम,
न पाओगे, वीरानों में,
गम के अफ़साने बहुत सुने,
हर गम है इन अफ़सानों में॥

जो जलन छुपी है जेहन में,
वो जलन नहीं परवानों में,
जब से उनकी चौखट चूमी,
तब से गिनती नादानों में॥

दौलत जो आदमजाति की थी,
वह बची नहीं इंसानों में,
अच्छाई पर पाण्डित्व आज,
होता है बेईमानों में॥

अब देख तरक्की इसां की,
डर पनप रहा भगवानों में,
चढ़ गई साइंस अब तो इतनी,
बच्चे होंगे कारखानों में॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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