अब कुकुरमुत्तों की तरह, उग रहे हैं नर्सिंग होम,
हर मुहल्ले और गली में, खुल रहे हैं नर्सिंग होम॥
हर मुहल्ले और गली में, खुल रहे हैं नर्सिंग होम॥
नर्सें, नर्सें न रहीं अब, डॉक्टर बनिया बने,
आज दौलत की हबस में, जल रहे हैं नर्सिंग होम॥
आज दौलत की हबस में, जल रहे हैं नर्सिंग होम॥
फर्ज और ईमान बेचा, बेच दी संवेदना,
बेचकर इंसानियत को, सो रहे हैं नर्सिंग होम॥
बेचकर इंसानियत को, सो रहे हैं नर्सिंग होम॥
रोगी को देखन से पहले, फीस मोटी चाहिए,
पार निर्दयता की सीमा, हो रहे हैं नर्सिंग होम॥
पार निर्दयता की सीमा, हो रहे हैं नर्सिंग होम॥
चंद रुपयों के लिए, अब गर्भ में करते कत्ल,
इस नई पीढ़ी में काँटें, बो रहे हैं नर्सिंग होम॥
इस नई पीढ़ी में काँटें, बो रहे हैं नर्सिंग होम॥
कर रहे गुर्दों की चोरी, लें चुरा नवजात शिशु,
चोरियत में अब तरक्की, कर रहे हैं नर्सिंग होम॥
चोरियत में अब तरक्की, कर रहे हैं नर्सिंग होम॥
खर्च से तय हो रही है, मर्ज की गम्भीरता,
फर्ज की गम्भीरताऐं, खों रहे हैं नर्सिंग होम॥
फर्ज की गम्भीरताऐं, खों रहे हैं नर्सिंग होम॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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