Saturday, May 16, 2015

69 "हर कदम पर खार है"

बेबजह मत घूमिए बाजार है।
देखना है, देख लो व्यापार है॥

पैसे हों तो देखिये हर चीज को,
अन्यथा यों घूमना बेकार॥

लूटखोरी का करो प्रतिरोध मत,
यह मुनासिब अब नहीं सरकार है॥

चापलूसों की यहाँ चाँदी कटे,
सीधा-साधा आदमी लाचार है॥

इस तरह से रोज उसको देख मत,
है हसीना किन्तु इज्जतदार है॥

क्यों उलझते नाँगफलियों में यहाँ,
जबकि घर में पेड़ छायादार है॥

बेवशी की मुस्कराहट को यहाँ,
तूँ समझता है कि सच्चा प्यार है॥

बात सच्चाई की करना है सरल,
चलते हैं तो हर कदम पे खार है॥

उस गवाह से कुछ भी कहवा लीजिए,
जिसकी गर्दन पे रखी तलवार है॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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