Saturday, May 16, 2015

56 जमाने की हकीकत को

जमाने की हकीकत को, सँभलकर हमने देखा है।
भरी काँटों से पगडंडी पे, चलकर हमने देखा है॥
 
अपने हाथों से कागज पर, करें जो नारियां नंगी,
यहाँ के चित्रकारों के, हुनर को हमने देखा है॥
 
धर्म का नाम लेकर के, फूँकने राम की नगरी,
गए हनुमान थे जिस पर, डगर को हमने देखा है॥
 
तरक्की, अमन से बढ़कर, सियासत का जो मुद्दा है,
भुनाते वोट हैं जिस पर, वो खण्डहर हमने देखा है॥
 
चले जूते, चले चप्पल, लड़े कुत्तों की तरह जो,
अपने संसद भवन में इस, समर को हमने देखा है॥
 
सियासत के दरिंदों से, बचाकर देश को रखना,
इनके हाथों से जलते इस, शहर को हमने देखा है॥
 
लाज लूटी गई जिसमें, कत्ल जिसमें हुए बच्चे,
आज फिर इक नए वीरान, घर को हमने देखा है॥
 
जिससे जन्मा उसी को ढस रहा, आतंक अब देखो,
लाल मस्जिद पे ढाए, उस कहर हो हमने देखा है॥
 
कभी आतंक की करना, हिमायत ठीक न होता,
उठे ग्यारह सितंबर का, बबंडर हमने देखा है॥

रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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