एक बार घटना घटी, लिखता उसका हाल,
टोयलेट जाने के लिए, पहुँचा वेटिंग हॉल,
चाबी एस.एम. से मिली, क्योंकि थी पहिचान,
खोला वेटिंग रूम फिर, काम हुआ आसान॥
ताला खुलते आ गये, तभी एक साहेबान,
प्रेशर ज्यादा है बढ़ा, उनने किया ब्यान,
झट से थैला पटक, पुरुष टोयलेट में घुस गए,
मेहनत गई व्यर्थ, यार हम ऐसे फँस गए॥
मन में करूँ विचार, कहाँ ऐसे में जाएं,
सूझी इक तरकीब, जनाने में घुस जाएं,
इतना सोच घुस गए, कुंडी कर ली बंद,
झटपट खोली पैंट, और बैठ गए सानंद॥
प्रेशर जब कम हुआ, और कुछ राहत पाई,
तब तक नॉकिंग की आवाज कान में आई,
जल्दी करिए बहिन, अर्ज उन ने फरमाई,
उनको क्या मालूम, बन्द अन्दर है भाई?
काम हुआ ज्यों खत्म, और मैं बाहर आया,
मैडम, मिस्टर, बैग, नज़र कुछ भी न आया,
मन किया विचार फिसड्डी, यहाँ भी बन गए,
लगता दोनों लोग यहाँ से, पहले कढ़ गए॥
सोच ताला लगा, पास एस.एम. के आया,
चाबी करी सुपर्द, और मन में हर्षाया,
धन्यवाद फिर दिया, लिया ज्यों मैंने झोला,
पी.पी. अंदर घुसा, और फिर ऐसे बोला॥
साहब, मैडम बंद, और हैं वो चिल्लाती,
हैं गुस्से में लाल, और हैं वो घबरातीं,
ताला खोला गया, और मिस बाहर आईं,
किसने किया था बंद? ज़ोर से वो चिल्लाईं॥
ताला मैनें दिया, मगर तुम कहाँ थी अंदर?
झिझक के उनने कहा, पुरुष टोयलेट के अंदर,
इसीलिए तो अक्ल, खा गई मेरी धोखा,
कर दिया ताला बंद, नहीं मैंने कुछ सोचा॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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एस.एम. – स्टेशन मास्टर, कढ़ गए – निकल गए, पी.पी. – प्लेटफ़ार्म पोर्टर
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