हकीकत देखनी है तो, हमारे गाँव में आओ।
गरीबी देखनी है तो, हमारे गाँव में आओ।
जहाँ धरती बिछौना है, जहाँ आकाश चद्दर है,
जहाँ मैले फटे कपड़े, जहाँ मलमल, न खद्दर है,
जहाँ पर जानवर, इंसान, इक छप्पर में’ होते है,
वहीं चौका, वहीं बैठक, वहीं सब लोग सोते हैं,
अगर ये देखना है तो, हमारे गाँव में आओ।।
जहाँ सूखा, जहाँ ओले, जहाँ सर्दी कटीली है,
जहाँ दुर्भाग्य का डेरा, जहाँ किस्मत हठीली है,
जहाँ कर्मठ को मेहनत का, कोई भी फल नहीं मिलता,
जहाँ पर मुश्किलें मिलतीं, जहाँ पर हल नहीं मिलता,
अगर ये देखना है तो, हमारे गाँव में आओ।।
जहाँ हर आदमी को सूदखोरी कर्ज में जकड़े,
जहाँ दुर्बल की छाती पर, हुकूमत कर रहे तगड़े,
जहाँ पैंबंद पे पैबंद हैं, जहाँ मैले फटे कपड़े,
जहाँ दारू, जहाँ सट्टा, जहाँ लफड़े, जहाँ झगड़े,
अगर ये देखना है तो, हमारे गाँव में आओ।।
जहाँ औरों के दीपक से, हुआ करता है घर रोशन,
जहाँ पर भूख होती है, जहाँ पर है नहीं भोजन,
जहाँ पकवान की बातें, फकत किस्सों में सुनते हैं,
जहाँ रोटी न मिलती है, मगर सरकार चुनते हैं,
अगर ये देखना है तो, हमारे गाँव में आओ।।
जहाँ पर सिर्फ शोषित हैं, जहाँ पर सिर्फ शोषण है,
जहाँ पर भुखमरी मिलती, जहाँ पर बस कुपोषण है,
जहाँ हैं पसलियाँ दिखतीं, कमर टेड़ी है यौवन की,
जहाँ पर भूख से व्याकुल, बुरी हालत है बचपन की,
अगर ये देखना है तो, हमारे गाँव में आओ।।
जहाँ मजदूर बंधक हैं, करे जो काम भट्टों पर,
उन्हीं का हक़ नहीं उनको, मिले सरकारी' पट्टों पर,
जहाँ सूखी पथेरन में, रती का रूप दिखता है,
जहाँ बालाओं की इज्जत, जहाँ कौमार्य बिकता है,
अगर ये देखना है तो, हमारे गाँव में आओ।।
जहाँ मध्याह्न भोजन को, खड़े बच्चे दिखा करते,
उसी में छिपकली, मेढक, जहाँ अक्सर मिला करते,
जहाँ टीचर को गिनती अरु, पहाड़े भी न आते हैं,
हमारे देश के बच्चों को, ये टीचर पढ़ाते हैं,
अगर ये देखना है तो, हमारे गाँव में आओ।।
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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