जैसे ताजा श्वेत कमल हो।
प्रेमगीत या एक ग़ज़ल हो ।।
प्रेमगीत या एक ग़ज़ल हो ।।
धवल दूधिया सा तन चमके,
जैसे कोई ताजमहल हो ।।
जैसे कोई ताजमहल हो ।।
सारी सृष्टि लगे है मिथ्या,
तुम्ही असल हो, तुम्ही असल हो।।
तुम्ही असल हो, तुम्ही असल हो।।
तेरे सम्मुख सब निर्बल हैं,
तुम बलशाली, तुम्हीं सबल हो।।
तुम बलशाली, तुम्हीं सबल हो।।
जीवन एक मरुस्थल तपता,
बदली जैसी तुम शीतल हो।।
बदली जैसी तुम शीतल हो।।
इक पल लगती अमृत जैसी,
दूजे पल में लगे गरल हो।।
दूजे पल में लगे गरल हो।।
बहुत समझना चाहा 'अनुपम',
लेकिन इतनी कहाँ सरल हो?
लेकिन इतनी कहाँ सरल हो?
रणवीर सिंह (अनुपम)
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गरल - जहर
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गरल - जहर
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