बात न करिए आज यहाँ पर, मॉलों और दुकानों की।
करनी है तो बात करो तुम, खेती औ खलिहानों की।।
करनी है तो बात करो तुम, खेती औ खलिहानों की।।
छोटे दिल में कहाँ जगह है, कोठी, बंगला, गाड़ी की,
मुझ गरीब के आगे तुम मत, करिए बात खजानों की।।
मुझ गरीब के आगे तुम मत, करिए बात खजानों की।।
आज किंगफिशर, चड्ढाओं का, फ़ैल रहा रुजगार यहाँ,
गाय, दूध की बात न करते, करते हो मयखानों की।।
गाय, दूध की बात न करते, करते हो मयखानों की।।
इंसानों के साथ भी रहकर, जो इन्सान न बन पाए,
वो ही करते बात फिरें अब, गीता और कुरानों की।।
वो ही करते बात फिरें अब, गीता और कुरानों की।।
बल्ला कंदुक से खेलें जो, वो सब के हक़दार हुए,
जो जानों पे खेल रहे हैं, फिक्र न उन्हीं जवानों की।।
जो जानों पे खेल रहे हैं, फिक्र न उन्हीं जवानों की।।
जो जाकर के वोट न देते, सरकारें उनकी बनतीं,
संसद में चर्चाएं होती, उनके लिए विधानों की।।
संसद में चर्चाएं होती, उनके लिए विधानों की।।
बात गरीबों, मजदूरों की, काहे नहिं तुमसे होती,
सच्चे दिल से बात कभी नहिं, करते आप किसानों की।।
सच्चे दिल से बात कभी नहिं, करते आप किसानों की।।
जिधर देखिये चर्चे होते, लम्फट के वाचालों के,
बात कभी भी नहिं होती है, यारो बंद जुबानों की।।
बात कभी भी नहिं होती है, यारो बंद जुबानों की।।
बात हो रही है दंगों की, दंगा करने वालों की,
बात नहीं करता है कोई, जख्मों और निशानों की।।
बात नहीं करता है कोई, जख्मों और निशानों की।।
फिक्र किसे हरिया, घीसू की, जो धरती में समां गए,
फ़िक्र सभी को बँटवारे की, कोयला और खदानों की।।
फ़िक्र सभी को बँटवारे की, कोयला और खदानों की।।
देह चमेली औ मुन्नी की, आँख फाड़कर देख रहे,
हाथ न देखे लजवंती के, करे रोपाई धानों की।।
हाथ न देखे लजवंती के, करे रोपाई धानों की।।
बहुत हो चुकी महल की बातें, उनमें रहने वालों की,
बात झोपड़ी की करिए अब, कच्चे, खसे मकानों की।।
बात झोपड़ी की करिए अब, कच्चे, खसे मकानों की।।
बात आज करनी ही होगी, शोषित और गरीबों की,
बात छोड़िये मक्कारी की, झूठे नए बहानों की।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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बात छोड़िये मक्कारी की, झूठे नए बहानों की।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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