Monday, April 27, 2015

6 इस हकीकत पर लिखो

गीतिका छंद - 2122   2122  2122  212

इस हकीक़त पर लिखो या, उस फ़साने पर लिखो,
आज पर भी तुम लिखो गुजरे ज़माने पर लिखो,
घाव देने का चलन, हर ओर अब है चल रहा,
जब भी लिक्खो यार अब, मलहम लगाने पर लिखो।।
 
नफरतों पर मत लिखो, मत दिल दुखाने पर लिखो,
दर्द में डूबे हुए सारे ज़माने पर लिखो,
हादसों पर हादसे हर ओर अब तो हो रहे,
आदमी के दर्द और उसके कराहने पर लिखो।।
 
भोले'-भाले इन किसानों की जमीनों पर लिखो,
हड़पने को ताक में, इन नामचीनों पर लिखो,
हिन्द में रहकर के रखते, हिन्द से जो दुश्मनी,
साँप  जो  पाले हुए, उन आस्तीनों पर लिखो।।
 
है गरीबी चीज क्या, इसको बताने पर लिखो,
देश से इस भुखमरी को, अब मिटाने पर लिखो,
बात करिए खेत की, खलिहान की अरु भूख की,
आदमी के अब उजड़ते, आशियाने पर लिखो।।
 
बाग़ पर लिखते हो तो, मौसम सुहाने पर लिखो,
पक्षियों के कोलाहल और चेंचिहाने पर लिखो,
जिंदगी अनमोल है आशा, उमंगों से भरी,
उड़ने को चूजों के पर के, फड़फड़ाने पर लिखो।।
 
दिल्लगी पर मत लिखो अब दिल लगाने पर लिखो,
फूल पर लिखते हो तो, भँवरे दिवाने पर लिखो,
रूप और सृंगार पर, सब कुछ तो तुमने लिख दिया,
प्रेयसी की वाट और प्रीतम के आने पर लिखो।।
 
साथियो आओ बढ़ो, गम भूल जाने पर लिखो,
नारियों और बेटियों को अब बचाने पर लिखो,
कंक्रीटों के यहाँ जंगल खड़े चहुँओर हैं,
इस धरा को पेड़-पौधों से सजाने पर लिखो।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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